महारास
महारास
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बिरज में रास रचावत श्याम !
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बदरी ओट शरद कौ चंदा, मंद मंद मुसकावै,
यमुना के तट ब्रज गोपिन संग, बंसी श्याम बजावै,
ता तिक थैया ता तिक थैया ,
गोपी-गोपी संग कन्हैया,
नाच रह्यौ घनश्याम।
बिरज में……(1)
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महक रह्यौ वन-उपवन सिगरौ ,सम्मोहन सौ छायौ,
डार किशोरी के गलबहियाँ ,गोपीजन हरषायौ ,
ता तिक थैया ता तिक थैया,
गोपी-गोपी संग कन्हैया,
वृन्दावन सुखधाम ।
बिरज में…..(2)
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गोल घेर में गोपी नाचैं, सुध-बुध सब बिसराई,
पल कूँ पलक न झपकैं नैंकहु ,नैनन प्रीत समाई,
ता तिक थैया ता तिक थैया,
गोपी-गोपी संग कन्हैया,
बिसरौ लौकिक काम ।
बिरज में….(3)
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रुनझुन-रुनझुन भूषन की धुन,जुगनूँ चमकत डोलैं,
घुँघरुन की रुनझुन के सँग में, झींगुर झुनझुन बोलैं,
ता तिक थैया ता तिक थैया,
गोपी-गोपी संग कन्हैया,
लीला ललित ललाम ।
बिरज में……(4)
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ठहर गयौ कालिंदी कौ जल, कलरव करवौ भूलौ,
गोपीकृष्ण चरन ते छिव कै, मन ब्रजरज कौ फूलौ,
ता तिक थैया ता तिक थैया,
गोपी-गोपी संग कन्हैया ,
सोहत छवि अभिराम ।
बिरज में……(5)
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परमातम में आत्म समायौ, नभ ते देव निहारैं,
लीलाधर की अनुपम लीला, लख सरवस बलिहारैं,
ता तिक थैया ता तिक थैया,
गोपी-गोपी संग कन्हैया,
अंग किशोरी वाम ।
बिरज में……(6)
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जनम जनम कौ जोग फलौ रे, भक्ति समाधी पाई ,
पुरुषोत्तम के संग सबहि नै, अनुपम रैन बिताई ,
ता तिक थैया ता तिक थैया ,
गोपी-गोपी संग कन्हैया ,
जै श्री राधे श्याम ।
बिरज में …….(7)
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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