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18 Jul 2022 · 16 min read

महाराणा प्रताप और बादशाह अकबर की मुलाकात

ध्यान दें – ये उस कालखंड और तब हुई घटनाओं के अनुसार लिखी एक काल्पनिक कहानी (Historical Fiction) है।

पराक्रम से गूंजा ये गगन,
थर-थर कांपे जिससे दुश्मन,
सिंह के पंजों में तड़पे जैसे भुजंग!

एक हाथ खड़ग – एक हाथ भाला,
मेवाड़ की मिट्टी ने निकली थी वो ज्वाला,
हल्दीघाटी को जिसने लाल कर डाला!

हमलावरों की हिम्मत का हर कतरा डिगा,
चेतक पर उन्हें वो शूरवीर यमराज दिखा!

सुन चेतक के कदमों की छाप,
उड़ गए शत्रु जैसे भाप, रूद्र ज्वाला की वो ताप,
मेवाड़ की अटल दीवार…महाराणा प्रताप!

मध्यकालीन भारत…15वी शताब्दी का समय! कई राजाओं के झंडों के तले भारत अनेक छोटे-बड़े राज्यों में बंटा था जिनमें से एक थी राजपूतों की भूमि मेवाड़! मेवाड़ पर राज कर रहे शिशोदिया खानदान के राजा उदय सिंह भी अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए जूझ रहे थे। इसी दौरान समय एक योद्धा को आने वाला समय बदलने के लिए तैयार कर रहा था।
==========
आज राजमहल में उत्सव जैसा माहौल था। सिर्फ महल ही नहीं मेवाड़ की हर गली मानो किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। निराशा के दौर में जैसे मेवाड़ का दामन थामने के लिए एक उम्मीद की किरण आई थी।

इस हलचल से अनजान राजवैद्य मूल सिंह ने सेनापति उत्कर्ष से पूछा, “सेनापति जी, ये किस आयोजन की तैयारियां चल रही हैं? इस मौसम में तो कोई त्यौहार भी नहीं होता है।”

सेनापति उत्कर्ष ने एक सैनिक को कुछ थमाते हुए कहा, “आज कुंवर प्रताप गुरुकुल से लौट रहे हैं। यह आयोजन उन्हीं के स्वागत के लिए किया गया है।”

मूल सिंह ने द्वार की तरफ होती सजावट को देखते हुए कहा, “लेकिन किसी राजकुमार का कुछ दिनों के अवकाश पर गुरुकुल से महल आना तो आम बात है। इसमें उत्सव जैसा क्या है?”

सेनापति उत्कर्ष मुस्कुराकर बोले, “राजवैद्य जी, कुंवर प्रताप अवकाश के लिए महल में नहीं आ रहे हैं। इससे पहले की आप किसी और आशंका से घबराएं, आपको बता दूँ कि गुरु वेदांत ने उन्हें गुरुकुल से नहीं निकाला है। वो गुरुकुल की सभी शिक्षाएं ख़त्म करके आ रहे हैं।”

मूल सिंह अवाक रह गए, “असंभव! एक 16-17 साल का किशोर 24-25 साल में पूरी होने वाली सभी शस्त्र विद्याएं और शिक्षाएं कैसे खत्म कर सकता है?”

उत्कर्ष ने मूल सिंह के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “ये केवल आपकी ही नहीं हम सबकी प्रतिक्रिया थी। कुंवर प्रताप सिंह ने ये साबित कर दिया है कि मेवाड़ की गद्दी के लिए उनके अलावा कोई विकल्प नहीं है।”

तभी उनकी करीब एक तेज़ आवाज़ गूंजी, “सेनापति उत्कर्ष!”

दोनों ने पलटकर देखा तो महाराज उदय सिंह की दूसरी रानी सज्जा बाई उन्हें घूर रही थीं जिनका बेटा कुंवर शक्ति सिंह, प्रताप से कुछ ही महीने छोटा था। गुरुकुल में प्रताप की सफलता से जहाँ पूरा मेवाड़ खुश था वहीं इस खबर से रानी सज्जा बाई के मन पर सांप लोट रहे थे।

इससे पहले सेनापति कुछ कहते, रानी सज्जा बाई ने अपना गुस्सा दबाते हुए कहा, “मेवाड़ की राजगद्दी किसको मिलेगी यह समय बताएगा, बेहतर होगा कि आप इस समय अपने काम पर ध्यान दें।

सकपकाये सेनापति के मुंह से सिर्फ एक शब्द फूटा, “जी!” और वे सैनकों को निर्देश देने के काम में लग गए।
==========

इधर कुंवर प्रताप और गुरु वेदांत के काफिले पर मेवाड़ की गलियों में फूलों की बारिश हो रही थी। राणा प्रताप में सबको अपना मसीहा दिखाई दे रहा था।

बीच-बीच में कहीं से ये आवाज़ भी आ जाती, “राजा प्रताप सिंह की जय!”

जहाँ गुरु वेदांत अपने युवा शिष्य के लिए जनता के इस स्नेह को देख कर फूले नहीं समां रहे थे वहीं प्रताप को मन ही मन ये बात अखर रही थी कि उसके पिता के रहते हुए कई लोग उसे राजा क्यों कह रहे हैं। वो रथ पर लोगों की भीड़ के बीच थे इसलिए उनके मन की ये बात किसी से पूछने का सही समय नहीं था।

राजमहल पहुँचने पर कई सैनिकों के साथ सेनापति उत्कर्ष और अन्य मंत्री, प्रताप की माता रानी जयवंता बाई, सौतेली माता सज्जा बाई और कुंवर शक्ति सिंह उनके स्वागत में खड़े थे। एक बार फिर से “राजा राणा प्रताप की जय!” का उद्घोष होने लगा।

कुंवर प्रताप कबसे इस क्षण का इंतज़ार कर रहा था। अपनी गुरुकुल शिक्षा इतनी कम उम्र में पूरी कर वो अपने पिता का सर गर्व से ऊँचा करना चाहता था। भीड़ में उसकी आँखें केवल अपने पिता को ही ढूंढ रही थीं। उसके लिए लगते नारे उसे परेशान कर रहे थे।

अपने स्वागत कार्यक्रम में सबका अभिवादन करने के बाद प्रताप माँ के पास बैठा। उसने रानी जयवंता बाई से पूछा, “माँ, पिता जी कहाँ हैं? ये कई लोग और सैनिक मुझे राजा क्यों बोल रहे हैं?”

जयवंता बाई प्रताप के सर पर हाथ फिरा कर बोली, “तुम्हारे पिता की तबियत बहुत ख़राब है। उनकी ऐसी हालत देख हमने ये आयोजन नहीं करने का फैसला लिया था, लेकिन उन्होंने ज़िद करके ये आयोजन करवाया। वो अपनी हालत की वजह से तुम्हारी इतनी बड़ी उपलब्धि का जश्न टालना नहीं चाहते थे।”

माँ की बात ने प्रताप का जश्न और फीका कर दिया, उसने बुझे मन से रानी से कहा, “माँ, लेकिन…”

जयवंता बाई ने उसका चेहरा पढ़कर कहा, “तुम घबराओं मत, हमारे साथ-साथ वैद्य मूल सिंह दिन-रात उनकी सेवा में लगे रहते हैं।”

इस उत्सव के माहौल के बीच मेवाड़ का ख़ास दूत महल में आता है। इस दूत को राजा उदय सिंह ने मेवाड़ राज्य की शर्तों के साथ मुगल दरबार भेजा था। बादशाह अकबर ने उन सभी शर्तों को नामंज़ूर कर दिया और मेवाड़ के दूत को गंजा कर, उसकी पिटाई और बेज़्ज़ती कर दरबार से निकलवा दिया।

ये खबर सुन और राजदूत का हाल देख हंसी-ख़ुशी का माहौल ग़मगीन हो गया। आज से पहले किसी राजदूत की ऐसी बेइज़्ज़ती नहीं हुई थी। राजा उदय सिंह के घटते प्रभाव और बिगड़ती तबियत के कारण सबको लगने लगा था कि मुग़ल जल्द ही हमला कर देंगे और भारत के अन्य राज्यों की तरह मेवाड़ भी उनके अधीन होगा।

राजा उदय सिंह की अनुपस्तिथि में किसी को समझ नहीं आ रहा था कि मुगलों की इस हरकत का क्या जवाब दिया जाए।

स्थिति भांप कर सबसे वरिष्ठ राजसदस्य गुरु वेदांत अपनी जगह पर खड़े हुए और बोले, “इस समय हमारी तैयारी और सेना कम है। ये एक गंभीर घटना है, लेकिन हमें किसी भी तरह के आवेश में नहीं आना है!”

दूत की बात सुनने के बाद से ही आँखों में अंगार लिए बैठे कुंवर प्रताप से रहा नहीं गया, “माफ़ कीजिये, गुरुदेव लेकिन मुझे पिता जी का ऐसा अपमान स्वीकार नहीं है। आपके मार्गदर्शन में मैंने सभी शिक्षाएं पूरी कर ली हैं और मेवाड़ की सेना न सही, मैं तो तैयार हूँ।”

गुरु वेदांत परेशान होकर बोले, “तुम किस बात के लिए तैयार हो?”
प्रताप उसी स्वर में बोला, “बदले के लिए!”

गुरु वेदांत बोले, “…लेकिन प्रताप”

प्रताप अब जैसे अपने मन में शपथ ले चुका था, “गुरुवर, आपने ही हमें सिखाया था कि राजपूतों को कोई जितना देता है, हम उसका सूद समेत उसे लौटाते हैं। मेरा खून इतना ठंडा नहीं कि मैंने अपनी आँखों से महाराज का अपमान देखने के बाद भी कुछ न करूँ!”

रानी सज्जा बाई के इशारे पर सेनापति उत्कर्ष ने कहा, “कुंवर प्रताप, अभी आपकी उम्र कम है। ऐसे मामलों में आपके लिए बड़ों का मार्गदर्शन ज़रूरी है।”

प्रताप आज किसी की नहीं सुनने वाला था, “उम्र तो उस अकबर की भी मेरे बराबर ही है जो पूरे भारत का बादशाह बना बैठा है। अगर उसके लिए उम्र केवल एक अंक है, तो मेरे लिए क्यों नहीं। और अगर हमें आगे उससे ही युद्ध करना है, तो क्यों न उसे पहले से ही जान लें!”

रानी जयवंता बाई ने प्रताप को टोका, “कुंवर प्रताप, अब आप मेवाड़ के प्रतिनिधि भी हैं। जल्दबाज़ी में हुई आपकी किसी भूल का परिणाम पूरे मेवाड़ को चुकाना पड़ सकता है।”

प्रताप ने माँ को समझाया, “माता, मेरा ये जोखिम सिर्फ़ मेरे लिए है। मैं आपको वचन देता हूं कि अपनी किसी हरकत का नुक्सान मेवाड़ वासियों को नहीं झेलने दूंगा।”

अब दरबार में मौजूद हर किसी को समझ आ चुका था कि प्रताप का फैसला अटल है।

तभी प्रताप के पास आकर कुंवर शक्ति बोला, “दादाभाई अगर आप पिता जी के अपमान का बदला लेने जाएंगे, तो मैं भी साथ चलूंगा!”

प्रताप ने मुड़कर शक्ति से कहा, “नहीं, शक्ति। ये मेरा फैसला है और मुझे ही इसे पूरा करना है। मुग़ल दरबार तक पहुँचने की डगर खतरों से भरी हुई है। मैं अपने अलावा किसी और को उन खतरों में नहीं डालना चाहता।”

रानी सज्जा बाई ने अपने पुत्र कुंवर शक्ति को पीछे खींच लिया और मन ही मन सोचा, “प्रताप कौनसा मुगलों के चंगुल से वापस आ सकेगा। जब शक्ति की राजगद्दी का रास्ता अपने आप खाली हो रहा है, तो और भी अच्छा!”

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उसी रात प्रताप अपने पिता के कक्षा में अपनी माँ रानी जयवंता बाई से बातें कर रहा था।

रानी स्नेह से उसके मुंह पर हाथ फिराते हुए बोलीं, “कितना बड़ा हो गया है मेरा पुत्र! अभी कल ही तो अपने नन्हे क़दमों से इस कक्ष में भागता और मेरे आँचल में छुपता था। आज अपने निर्णय खुद लेता है।”

प्रताप नम आँखें लिए बोला, “माँ, आपको पता है मैं कितने दिन से चैन से नहीं सोया हूँ। जब तक आपके आँचल में नहीं आ जाता तो चैन की नींद नहीं आती।”

रानी ने कहा, “…और आते ही दूर जाने का प्रबंध भी कर लिया।”

प्रताप ने भावुक होकर कहा, “एक पुत्र माँ से कितना भी दूर चला जाए, लेकिन फिर भी पास ही रहता है। आज मुग़ल बादशाह द्वारा पिता का अपमान मैं सह न सका।”

माँ तो जैसे पहले ही प्रताप का फैसला जानती थी, “पता है मुगल सेनापति ने मेवाड़ के बारे में और क्या कहा?”

प्रताप ने उत्सुक होकर पूछा, “क्या कहा?”

रानी बोलीं, “मेवाड़ की मिट्टी अब बंजर हो चुकी है, उसमे अब राणा सांगा जैसे शूरवीर नहीं होते जो दिल्ली के बादशाह को धूल चटा सकें।”

प्रताप का गुस्सा फिर जाग गया, “मेवाड़ की मिट्टी के गुण केवल इस मिट्टी से निकले लोग ही जान सकते हैं। इन्हें इतनी पीढ़ी बाद भी राणा सांगा याद हैं, तो राणा प्रताप भी हमेशा याद रहेगा।”

रानी जयवंता बाई ने सवाल किया, “वहां कैसे और कब जाओगे?”

प्रताप मुस्कुराकर बोला, “वैसे तो आपके आशीर्वाद से ये रास्ता पार ही समझो। लेकिन मेवाड़ के अलावा दिल्ली तक का सारा इलाका मुगलों के राज में है। कुछ दिनों में जब भी बरसात होती है, तो मुझे विषम मौसम में एक अच्छे घोड़े के साथ जाना होगा, ताकि वहां का ज़्यादा से ज़्यादा रास्ता मैं बिना किसी की नज़रों में आये पार कर सकूँ।
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अगले दिन कुंवर प्रताप और गुरु वेदांत घोड़ों का निरिक्षण कर रहे थे। प्रताप को एक घोडा कुछ पसंद आया, तो वही घोड़ा कुंवर शक्ति ने अपने लिए पसंद कर लिया। घोड़ों की देखभाल कर रहे सैनिक ने उन्हें चेताया,
“कुंवर सा, ये घोड़ा नया और शक्तिशाली है। किसी के संभाले नहीं संभलता। इसको रहने दें। आज वैसे भी मौसम ख़राब है।”

कुछ दिनों से हर किसी की जुबान पर सभी को प्रभावित करने के लालच में कुंवर शक्ति बिना कुछ सोचे समझे उस घोड़े कि अचानक बिजली कड़कने से घोड़ा बिदक गया और बाड़े को फांद कर जंगल की और भागने लगा। कुंवर शक्ति ने अभी घुड़सवारी का प्रशिक्षण शुरू ही किया था, तो आत्मविश्वास में घोड़े पर बैठने का फैसला उसे भारी पड़ गया था।

किसी के कुछ सोचने से पहले ही वो महल की सीमा से बहुत दूर जा चुका था। प्रताप फुर्ती दिखाते हुए एक घोड़े पर सवार हुआ और शक्ति का पीछा करना शुरू किया, प्रताप के घोड़े की गति सामान्य थी जबकि शक्ति का घोड़ा बहुत तेज़ दौड़ रहा था। प्रताप ने घोड़े की दिशा से अनुमान लगाते हुए अपने घोड़े को दूसरी ओर मोड़ा जहाँ से वो कुंवर शक्ति के घोड़े के पास पहुँच सकता था। कुछ ही देर में प्रताप जंगल में उस पगडंडी से कुछ ऊपर पहाड़ी पर था जहाँ से कुंवर शक्ति का घोड़ा गुज़रने को था। शक्ति के घोड़े को पास आता देख प्रताप ने अपने घोड़े से उतरकर एक सधी हुई छलांग लगाईं और शक्ति के घोड़े पर उसके साथ बैठ गया। उस मोड़ पर प्रताप के ऐसे आने के कारण घोड़े की गति कुछ कम हुई और प्रताप, शक्ति को लेकर नीचे आ गया। घोड़ा भी अब तक शांत हो चुका था।

शक्ति अपनी इस हालत और सबके सामने हुई बेइज़्ज़ती से बहुत गुस्से में था। वो अपनी कटार निकाल कर उस घोड़े की तरफ बढ़ा। प्रताप ने तुरंत उसे पकड़ा, “रुको शक्ति, ये क्या कर रहे हो?”

शक्ति गुस्से में बोला, “हट जाइये, दादाभाई। इस अड़ियल घोड़े को मैं सबक सिखाऊंगा।”

प्रताप सख्त होकर बोला, “इसमें इस घोड़े की कोई गलती नहीं है, अचानक कड़की बिजली और महल की भीड़ ने इसे परेशान कर दिया होगा। तुमने देखा ये कितनी सरपट भागता है और तेज़ी से मुड़ता है जैसा इसका अपना ही इंसानी दिमाग हो।”

शक्ति को प्रताप का तर्क अच्छा नहीं लगा, “…पर दादाभाई इसके दिमाग की वजह से मेरी जान जा सकती थी! इसको सज़ा तो मिलनी ही चाहिए।”

कुंवर प्रताप ने हामी भरते हुए कहा, “ठीक है, अगर तुम ऐसा चाहते तो तो ये ही होगा। वापस जाने के बाद इसे राजमहल के अस्तबल से निकाल देंगे।”

अपनी बात मानी जाने पर शक्ति को कुछ संतोष हुआ। लेकिन खराब मौसम और कड़कती बिजलियों से सिर्फ़ वो घोडा ही नहीं बल्कि जंगल के कई जानवर भी विचलित हुए थे। धरती में कंपन और दूर के शोर को सुन प्रताप को आने वाले खतरे का अंदेशा हो गया था।

उसने घोड़े पर बैठते हुए कहा, “शक्ति, लगता है इस मौसम से हाथियों का झुंड भी बिफर गया है। अब ये घोडा मेरे काबू में है, जल्दी पीछे बैठों।”

लेकिन इतनी देर में ही एक किशोर हाथी शक्ति के बिलकुल पीछे आ चुका था। प्रताप ने जादूगर की तरह घोड़े की कमान घुमाई और घोड़े ने अपनी पूरी लंबाई का इस्तेमाल कर एक अंकुश की तरह झुके हुए हाथी के माथे पर अपने पैर गड़ा दिए। हाथी शांत होकर दूसरी दिशा में चल पड़ा।

प्रताप ने घोड़े पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा, “अरे वाह मित्र, तुम शायद पिछले जन्म में कोई विद्वान रहे होंगे। लेकिन अभी खतरा टला नहीं है।”

प्रताप और वो घोड़ा किसी खेल प्रतियोगिता की तरह मदमस्त हाथियों के बीच से चतुराई से निकल रहे थे। जहाँ किसी और का इतने खतरों से बच के निकल पाना बहुत मुश्किल था वहीं प्रताप कुछ ही देर में महल पहुँच चुके थे।

गुरु वेदांत और कई सैनिक ये देखने दौड़े कि कुंवर प्रताप और कुंवर शक्ति ठीक तो हैं।

घोड़े से उतरकर प्रताप ने घोड़े को अस्तबल के बाहर खड़ा किया और मुस्कुराहट के साथ शक्ति से पूछा,
“कुंवर शक्ति, तो जैसा तय हुआ था क्या वैसा ही करें? इस घोड़े को अस्तबल से निकाल दें?”

शक्ति ने झेंपते हुए ना में सर हिला दिया और दो सैनिकों के साथ अपनी चोट का इलाज करवाने चला गया।

प्रताप घोड़े के पास आकर बोला, “डरो मत मित्र, मैं तुम्हें कहीं नहीं छोड़ने वाला था। तुम तो मुझे पहले ही भा गए थे। बस तुमने ही मेरी मित्रता ज़रा देर में स्वीकार की। लेकिन जब की, तो क्या खूब की!”

घोड़े ने प्रताप के कंधे पर अपना सर रख लिया। प्रताप ने बोलना जारी रखा,

“पता नहीं चलता कि तुम्हारी फुर्ती ज़्यादा तेज़ है या तुम्हारा दिमाग…चेतना से भरे हो तुम। तो आज से तुम्हारा नाम चेतक! कमर कस लो, चेतक। हम आज रात ही मुगलों के गढ़ में जा रहे हैं।
=========

बड़ों का आशीर्वाद लेकर प्रताप ने चेतक पर कुछ सामग्री बांधी और रात के अँधेरे में एक लंबे सफर पर निकल पड़ा। महारानी जयवंता बाई कमरे के झरोखे से भारत की गौरवगाथा लिखने जा रहे अपने पुत्र को उसके नज़र से गायब होने तक निहारती रहीं।

इधर प्रताप और चेतक तेज़ बारिश को चीरते हुए आगे बढ़ रहे थे। प्रताप के साथ जैसे चेतक में नयी ऊर्जा दौड़ रही थी। एक बिजली में बिदक जाने वाला चेतक अब बादल, बिजली, तेज़ बहाव के बरसाती नालों तक से परेशान नहीं हो रहा था।

प्रताप, अपनी योजना अनुसार सतपुड़ा के जंगलों में पहुँच चुका था। खबर के अनुसार बादशाह अकबर कुछ समय के लिए ग्वालियर में था। प्रताप गुरु वेदांत की सिखाई गई दिशाओं, भारत के जंगलों और पर्वतमालाओं की जानकारी के बल पर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था।

जहाँ उसके पीछे कुछ स्थानीय गुप्तचर या सैनिक लगते वो उन्हें जंगलों की भूल-भुलैया में फंसा देता था। कुछ दिनों में ही प्रताप ग्वालियर में अकबर के महल के पास पहुँच गया था।

उसने अपनी पोटली से गोह प्रजाति की दो छिपकलियां निकाली। किले के बाहर सैनिकों की गतिविधि पर नज़र रखते हुए प्रताप सही मौके के इंतज़ार में था। मुगल दरबार की समयसारिणी के अनुसार वो अकबर का दरबार लगने के समय वहां पहुंचना चाहता था।

तभी किले के पास गश्त कर रहे गुप्तचर सैनिकों की नज़र उसपर पड़ गई। वो लोग उसकी तरफ बढ़ने लगे। प्रताप ने चेतक को वापस जंगल की तरफ मोड़ लिया। कुछ दूर अंदर जाने के बाद प्रताप उन सैनिकों की नज़र से गायब हो गया और इससे पहले वो कुछ कर पाते, वो घोड़ो समेत प्रताप के बिछाए बड़े जाल में फँस गए थे। प्रताप जानबूझकर उनकी नज़रों में आया था। जंगल का ये हिस्सा किले के पास होकर भी वीरान था। प्रताप फिर से किले के पास पहुंचा और उसके इशारे पर रस्सी से बंधी गोह छिपकलियां किले पर चढ़कर चिपक गईं। प्रताप एक झटके में चेतक समेत किले की ऊपरी दीवार पर आ चुका था।

पहरा दे रहे सिपाहियों में शोर मच गया। चेतक प्रताप के साथ दो छलांगों में अकबर के दरबार के बीचोंबीच पहुँच गया था। अचानक एक राजपूत किशोर को सभा के बीच देखकर सब भौचक्के रह गए। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। केवल एक इंसान की वजह से अकबर के दरबार में युद्ध जैसा माहौल हो गया था। इस बीच कुछ सैनिक जो प्रताप की तरफ बढे भी उन्हें प्रताप ने आसानी से चित्त कर दिया।

मुग़ल सेनापति शेर खान को ये बात नागवार गुज़री, “खत्म कर दो इस गुस्ताख़ को!”

तभी वहां एक और आवाज़ गूंजी, “रुक जाओ! कोई कुछ नहीं करेगा।”

ये अकबर की आवाज़ थी। बादशाह अकबर का हुक्म मान सभी सैनिक शांत हो गए और प्रताप भी अपनी तरफ किसी हमलावर को न बढ़ते देख रुक गया।

शेर खान दांत पीसते हुए बोला, “मैं इसे जानता हूँ, ये मेवाड़ का शहज़ादा प्रताप है।”

ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई राजकुमार इस तरह बादशाह के दरबार में पहुंचा था। सबके लिए प्रताप और चेतक किसी सपने के किरदारों जैसे थे। मुगल सैनिकों के रुक जाने के बाद प्रताप ने भी अपनी तलवार मयान में रख ली थी।

शेर खान के रोकने के बाद भी अकबर अपनी उम्र के प्रताप के सामने खड़ा था। आने वाले भारत की तकदीर लिखने वाले दो योद्धा एक-दूसरे को देख रहे थे।

“क्या मैं इस तरह हमारे दरबार में आने की वजह जान सकता हूँ, शहज़ादे?”

“वजह आप ही हैं!”

दरबार में मौजूद मंत्री, सैनिक मुंह फाड़े प्रताप और अकबर को देख रहे थे।

अकबर ने दिलचस्पी से पूछा, “हमारी वजह से…हमने ऐसा क्या किया?”

प्रताप बोला, “आपने मेवाड़ के राजदूत का अपमान किया, उसकी पिटाई करके उसे गंजा तक कर दिया, और मेवाड़ की सारी शर्तें नामंज़ूर कर दी।”

अकबर ने सोचते हुए कहा, “हमने मेवाड़ की शर्तें ज़रूर नामंज़ूर की थी, लेकिन दूत को कुछ नहीं कहा था। ये किसकी हरकत थी?”

दरबार में नज़र दौड़ाते हुए अकबर को समझ आ गया की ये शेर खान ने किया था। उसने कहा, “शहज़ादे प्रताप, इस बात का हमें दुख है! दोषी को सज़ा मिलेगी। हम राजपूत शौर्य से वाकिफ हैं। मेवाड़ के राजदूत का अपमान हम कभी नहीं कर सकते!”

अकबर के जवाब ने प्रताप को चौंका दिया। उसके मन में जो अकबर की छवि थी वो एक क्रूर शासक की थी जबकि अकबर धैर्य से उसकी बातें सुन रहा था और दूत का अपमान भी उसने नहीं किया था।

शेर खान फिर बोल पड़ा, “बादशाह सलामत, इस हिमाकत के लिए शहज़ादे को कैद कर लीजिये। हो सकता है ये आपको मारने की साजिश हो।”

शेर खान की गंभीर बात पर अकबर के चेहरे पर मुस्कान आ गई, “आपको नहीं लगता शेर खान कि अगर शहज़ादे प्रताप का मकसद हमें मारने का होता तो वो दरबार में आते ही हमें ख़त्म कर देते?” शेर खान के पास इसका जवाब नहीं था।

अकबर ने चुप खड़े प्रताप से कहा, “आपके साथ आई सैनिक टुकड़ी कहाँ ठहरी है, शहज़ादे? हम अपने जासूसों और सैनिकों को बता देंगे कि उन्हें नुक्सान न पहुंचाएं।”

अब मुस्कुराने की बारी प्रताप की थी, “कौनसी टुकड़ी, सम्राट अकबर? मैं मेवाड़ से अकेला आया हूँ…सिर्फ अपने मित्र चेतक के साथ!”

प्रताप की बात से अकबर अचरच में दो कदम पीछे हट गया जैसे वो कोई कुदरत का करिश्मा देख रहा हो।

अकबर चेतक पर हाथ रखता हुआ बोला, “बहुत खूब! राजपूतों की बहादुरी के किस्से हमने सुने ही थे, आज देख भी लिया। कहिये आपको क्या चाहिए?”

प्रताप अकबर की आँखों में देखकर बोला, “मेवाड़ और आस-पास के क्षेत्र पर अफगान और मुग़ल सल्तनत के आक्रमण का खतरा रहता है। इन लड़ाइयों में निर्दोष जनता और कई सैनिकों की बलि चढ़ती है। मैं चाहता हूँ की आप मेवाड़ को मुगल सल्तनत में मिलाने का सपना छोड़ दें। इसमें ही हम सबकी भलाई है। अन्य मामलों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है।”

अकबर ने प्रताप की बात पर सोचकर कहा, “शहज़ादे प्रताप, मुगल सल्तनत के लिए, वो जगह व्यापार और सफर के लिए बहुत अहम है। लेकिन आज आपके सम्मान में हम वचन देते हैं कि हम मेवाड़ की ज़मीन पर कदम नहीं रखेंगे। अगर कोई और मुगल झंडे तले मेवाड़ की तरफ आयेगा तो उसे रोकेंगे भी नहीं…”

प्रताप ने अकबर की बात जारी रखते हुए कहा, “….ऐसे किसी भी कदम को रोकने के लिए राणा प्रताप है। लेकिन आपने मेवाड़ राज्य और मेरे पिता महाराज उदय सिंह की बात का सम्मान रखा, इसका मैं आभारी हूँ। आपके कुछ जासूस सैनिकों को मैंने पूर्व दिशा के जंगल में बंदी बनाया था, उन्हें छुड़ा लें।”

अकबर और प्रताप को एक-दूसरे की हिम्मत और उसूल पसंद आ रहे थे। अगर वो दुश्मन राज्यों से ना होते तो शायद बहुत अच्छे दोस्त होते। अकबर का मन प्रताप को मेहमान बनाने का था लेकिन ये मौका ठीक नहीं था। उसने सोचा कि कभी बेहतर स्थिति में वो प्रताप के साथ बैठेगा।

फिर कुंवर प्रताप ने वहां से विदा ली। कुछ देर बात हवा से बातें करते चेतक पर सवार महाराणा प्रताप मेवाड़ का सम्मान वापस लेकर लौट रहा था।

दो दिन बाद मेवाड़ के किले का एक प्रहरी रात के अँधेरे में चिल्लाया।

“कुंवर प्रताप, वापस आ गए!”

इतने दिनों से इंतज़ार में बैठे ऊंघते किले में जैसे जान आ गयी। हर झरोखे से एक नारा गूँज उठा!

“महाराणा प्रताप की जय!”

=========

– मोहित शर्मा ज़हन

Language: Hindi
1 Like · 1331 Views
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"गमलों में पौधे लगाते हैं,पेड़ नहीं".…. पौधों को हमेशा अतिरि
पूर्वार्थ
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं
कवि दीपक बवेजा
गरीबी में सौन्दर्य है।
गरीबी में सौन्दर्य है।
Acharya Rama Nand Mandal
यह समय / MUSAFIR BAITHA
यह समय / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
मेरी आत्मा ईश्वर है
मेरी आत्मा ईश्वर है
Ms.Ankit Halke jha
तुम जहा भी हो,तुरंत चले आओ
तुम जहा भी हो,तुरंत चले आओ
Ram Krishan Rastogi
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