*महाराजा अग्रसेन को भगवान अग्रसेन क्यों न कहें ?*
महाराजा अग्रसेन को भगवान अग्रसेन क्यों न कहें ?
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लंबे समय से ‘महाराजा अग्रसेन’ शब्द का प्रयोग होता रहा है। युगपुरुष अग्रसेन अग्रोहा के महाराजा थे, यह भी सर्वविदित है। इसी आधार पर उन्हें महाराजा कहा और लिखा जाता रहा।
अपने शासनकाल में एक महाराजा के रूप में अग्रसेन के कार्य अद्भुत रहे। अपने राज्य अग्रोहा में उन्होंने अठारह गोत्रों की नव-रचना की। सब प्रकार के जन्मगत भेदभाव से मुक्ति दिलाई। एक गोत्र का विवाह अपने ही गोत्र में न करने की रीति चलाई। अठारहवें गोत्र का सृजन करते समय परंपरावादी चुनौतियों से जूझते हुए अपने समता मूलक विचारों पर अडिग रहे। यह सब किसी साधारण मनुष्य का कार्य नहीं हो सकता। मांसाहार की प्रथा समाप्त की। शाकाहार को हर घर में प्रतिष्ठित किया। पशु बलि पर रोक लगा दी। यह कार्य क्या कोई साधारण मनुष्य कर सकता है ? गरीबी मिटाने का सपना भला किसके बस की बात थी ? लेकिन ‘एक ईंट एक रुपए’ के सिद्धांत के साथ अग्रोहा में न कोई निर्धन रहा, न कोई बेघर रहा। अग्रोहा के समाज में भ्रातृत्व की भावना को विकसित करके सबको सुखी और समृद्ध बनाने का कार्य क्या किसी साधारण मनुष्य के बस की बात कही जा सकती है ? यह कार्य तो कोई अलौकिक शक्ति से संपन्न दिव्य आत्मा के चमत्कार का ही परिणाम कहा जा सकता है।
लेकिन सत्यता तो यह है कि महाराजा अग्रसेन एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं। उनकी सत्यता इतिहास की कसौटी पर प्रमाणिकता के साथ उपस्थित है। उनके कार्य और कार्य-पद्धति एक खुली किताब की तरह सबके अध्ययन का विषय है। वास्तव में देखा जाए तो भगवान कहने के पीछे हमारी गहरी श्रद्धा महाराजा अग्रसेन के प्रति प्रकट हो रही है। हम यह तो मानते हैं कि महाराजा अग्रसेन ने मनुष्य के रूप में जन्म लिया। लेकिन हम जब उन्हें भगवान अग्रसेन कहते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि मनुष्य के भीतर जो दिव्य शक्ति विराजमान है, वह महाराजा अग्रसेन के रूप में अपनी सर्वोच्चता के साथ प्रकाशित हुई। दिव्यता का यह सर्वोच्च प्रकटीकरण ही अद्भुत और अकल्पनीय होता है। इसी के कारण हम महाराजा अग्रसेन को भगवान अग्रसेन कहने के लिए विवश हो जाते हैं। हमारा मस्तक उनके प्रति एक भक्त की भांति झुक जाता है।
अनेक कथावाचकों ने महाराजा अग्रसेन को भगवान कहने के साथ ही साथ उनके संबंध में ‘ अवतारवाद ‘ का प्रसंग भी जोड़ा है। उनका मत है कि जिस तरह भगवान राम और भगवान कृष्ण ईश्वर के अवतार हैं, ठीक उसी प्रकार भगवान अग्रसेन भी ईश्वर के अवतार हैं। लेकिन इसकी पुष्टि प्राचीन साहित्य में नहीं मिलती।
‘भगवान अग्रसेन’ न तो गलत संबोधन है, न ही आपत्तिजनक संबोधन है। यह महाराजा अग्रसेन के प्रति हमारी अपार श्रद्धा को व्यक्त करने वाला संबोधन है। बस इतना जरूर ध्यान में रखना होगा कि महाराजा अग्रसेन की ऐतिहासिकता, उनकी समता-मूलक दृष्टि, जन्म के आधार पर मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद को समाप्त करने की उनकी अद्भुत कार्यशैली तथा पशु-बलि पर रोक लगाने के उनके कठिन कार्य विस्मृत न हो जाऍं। हमें याद रखना होगा कि महाराजा अग्रसेन हमारे लिए पूजनीय भी हैं और अनुकरणीय भी हैं। उनके कार्यो और विचारों को अमल में लाना आज समय की सब से बड़ी जरूरत है।
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लेखक: रवि प्रकाश
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