महामारी – हमारे कर्मो का फल तो नहीं
शीर्षक – महामारी – हमारे कर्मो का फल तो नहीं l
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मैं इंसान हूँ l जीव जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी l अपनी बुद्धिमता के दम पर मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ l अपने साहस के दम पर पूरी दुनियाँ को अपनी मुट्ठी में कर सकता हूं l मैंने जिंदगी के बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं लेकिन किसी के सामने घुटने नहीं टेके l हमेशा विश्व विजेता का ख्वाव मेरी राह का पथ प्रदर्शक बना रहा l मैं सभ्य भी हूँ l असभ्यों को अपने पैरों तले रौंदकर मैं सभ्य बना हूँ l मैंने सभ्यता के नये नये आयाम गड़े है l नवीनता के चलते कुदरत को भी पछाड़ दिया है हमने l कृतिम चाँद, सूरज, बरसात, और उड़न तस्तरियां सब कुछ तो बना लिया है हमने l गगनचुंबी इमारते, चमचमाती सड़कें, आसमान से बाते करती हुई गाड़ियां, और आलीशान बंगले, होटल, स्कूल, और क्या चाहिए सभ्यता के विकास के लिए l सच में बहुत विकास कर लिया है हम इंसानो ने l इंसानी विकास की तीव्र रफ्तार जब कुदरती नियमों का उल्लंघन करते हुए आगे बढ़ती तो इंसानी सीना चौड़ा हो जाता गर्व से फूल कर l हमे सिर्फ जय चाहिये किसी भी हाल में, हारना तो हमारे खून में ही नहीं है l
अरे हाँ विकास से याद आया कि इस विकास की नीव क्या है l कितने चीखों और खून से सनी हुई है इस विकास की दीवारे l मैं मानता हूँ इंसान ने अपने आप को एक जानवर से बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया l लेकिन कभी यह जानने की कोशिश की है कि इस सफर का जो रास्ता था कितनी लाशों, करुण कृन्दन, चीत्कारो से भरा हुआ था l हर जगह हम प्रकृति का रास्ता रोक कर खड़े हो जाते हैं और उससे आगे निकलने की अड़ियल जिद पाल बैठते हैं और कभी कभी तो उससे आगे भी निकल जाते हैं l क्या प्रकृति इतनी कमजोर है जो हमारे हर एक कुकृत्य को सहन कर रही है l
बड़े बड़े शहरो, नगरों को देखो तो अट्टालिकाओं, चमचमाती सड़कें, प्रदूषण फैलाती गाड़ियां और घुटन भरी जिंदगी के अलावा तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा l क्या इसी को विकास कहते हैं?
हरे भरे जंगल काट कर शहरो की नींव रखी गई l कितने निरीह प्राणी इसमें निर्दोष ही बलि की बेदी पर चड गये l फिर रही सही कसर कारखानों ने पूरी कर दी l शोरगुल और प्रदूषण ने पक्षियों, जानवरो, हरे भरे जंगलो, नदियों तालाबों, पोखरों, सभी को तबाह कर दिया l कुछ जानवर और पंक्षी तो विलुप्त होने की कगार पर आ गये l फिर हमने पक्षी विहार, और एनिमल सफारी बनवाकर अपने विकसित होने का परिचय दिया l जंगल काटकर कितने जीवो को हमने घर से बेखर कर दिया ये हमने कभी नहीं सोचा l शायद ये सब विकास के पैमाने में नहीं आता l
इंसानी जीवों की सबसे बड़ी खूबी क्या है? पता है आपको… ये कोई भी काम सिर्फ और सिर्फ़ फ़ायदे के लिए करते हैं l चाहे रिश्तो की बात हो, आधुनिकता की बात हो, सभ्यता की बात हो, अन्य जीवों से प्रेम की बात हो, प्रकृति को सजोने या फिर मिटाने की बात हो और कुदरत से तालमेल की बात हो….. हर जगह फायदा ही होना चाहिए l एक फ़िल्म में देखा था कि हीरो कह रहा है कि यहाँ इस जहाँ में सबके मतलब बिल्कुल अलग होते हैं l जैसे कोई कहेगा “आई लव चिकन” तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि उसे मुर्गे से प्यार है l यहाँ वह मुर्गे को खाने की बात कर रहा है l इंसान हमेशा से ही कुदरत के साथ खिलवाड़ करता रहा है l नदियों पर बड़े पैमाने पर बाँध बनाये गये l जिससे उनका बहाव कम हो गया और धीरे धीरे पानी की कमी और इंसान की अनदेखी से एक नाले तक सिमट गयी l फिर उन नदियों के पुनरोत्थान के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया और साफ करने की पहल की गई l ये हमारे विकसित होने का एक और नमूना है l पहले आग लगाओ फिर उसे बुझाओ l
विकसित होने की लालसा में इंसान इंसानियत कब खो बैठा पता ही नहीं चला l इंसानों के शवो पर चड़कर सबसे ऊँचा बनने की चाह ने उसे कहाँ से कहाँ लाकर खड़ा कर दिया l कभी कभी तो ईश्वर से भी शिकायत लगने लगती है कि हे प्रभु l तूने इस इंसान को बनाया ही क्यों? कहीं ये तेरी कोई भूल तो नहीं l थोड़े से पैसे के लिए खून कर देना, बेटे की चाह से गर्भ में ही कन्या भ्रूण को मारना, अपने भाई की प्रॉपर्टी हड़प लेना, जिस माँ बाप ने जन्म दिया उसी को मार देना या ओल्डएस होम में पहुंचा देना, दहेज की लिए नववधू को मिट्टी का तेल डालकर जला देना….. ये सब देख कर तो यही लगता है.. ईश्वर तुझे इंसान नही बनाना चाहिए था l
बुद्धिमता और इंसानी विकास का परिचय एक चीज से और मिल सकता है वो है भोजन l आज इंसानी भोजन में प्रकृति की हर एक वस्तु शामिल हैं l अनाज, सब्जियाँ, फल, दूध, अंडे, मांस, मछली l लेकिन इंसान इन सब से संतुष्ट कहाँ होने वाला था l उसे तो भिन्न भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन चाहिए थे l फिर उसने अपने भोजन में, ऑक्टोपस, स्टार फिश, केकड़ा, कोंक्रोच, सांप, तिलचट्टा, चमगादड़, गिलहरी, कुत्ता, बिल्ली, बंदर,
और यहां तक कि मुर्दो को भी शामिल किया l हिरनी, बकरी और अन्य जीवों के पेट में पल रहे नवजात शिशुओं को भी अपने भोजन का हिस्सा बनाया l ये सब देखकर तो एक दानव की आत्मा भी कांप जाये लेकिन इंसान की नहीं कांपेगी क्योकि उसे विकसित होना है l
आज कोरोना महामारी की चपेट में पूरा विश्व आ गया है l चीन, पाकिस्तान, इटली, फ्रांस, रूस, जर्मनी, अमेरिका, यूएई, भारत में इस महामारी का कहर बरस रहा है l इटली और अमेरिका के हालात इस प्रकार है कि वहाँ मुर्दो के अंतिम संस्कार के लिए ताबूत भी नहीं मिल रहे हैं l दो गज जमीन का टुकड़ा नसीव नहीं हो रहा है l कोई कफन को डालने वाला तक नहीं है l कोई भी रिश्तेदार इस इंसान के साथ नहीं है l क्या यही है तेरा विकास? आज इंसान जमकर उस ईश्वर को कोष रहा है l उसे लग रहा है कि ये सब उस ईश्वर का करा धरा है l लेकिन ईश्वर क्या कर सकता है इसमें l वो तो मुक्त है वो तो न कुछ अच्छा करता है और न ही कुछ बुरा l कभी सोचा है कि ये महामारी और प्राकृतिक आपदाये कहीं हमारे कर्मो का फल तो नहीं? निसंदेह इसका उत्तर हमे अपने क्रिया कलापो में ही मिल जाएगा l क्या इंसान ने कभी कुदरत के वारे में सोचा है? सीधे तौर पर इसका जबाब सिर्फ न में होता है l लालच में प्रकृति का दोहन अत्याधिक किया गया l नदियों में कचरा और जहरीला रासायनिक पानी डाल डाल कर उसे प्रदूषित किया है जिसके फलस्वरूप जलीय जीवो पर भारी संकट आ पड़ा l सागर महासागर भी इंसानी कृत्यों की मार झेल रहे हैं l शहरीकरण के चलते जंगलो अत्याधिक कटान किया गया l इस विनाश के चलते जंगली जीवों का क्या हाल हुआ होगा कभी सोचा है l नहीं नहीं इतना समय ही कहाँ है इस भागदौड़ भरी जिंदगी में l इंसान ने खुद को ऊँचा स्थापित करने के लिए कितने जीवो का संहार किया और उनकी लाशों पर स्थापित की गगनचुम्बी इमारतें l क्या ये ही विकास की परिभाषा है?
आज की इस भयावह स्थिति के लिये इंसान कुदरत को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लेकिन अपनी गलतियों को मानने को तैयार नहीं l सच मानिये ये महामारी, इंसान के द्वारा की गई कुदरत से छेड़छाड़ का प्रतिशोध ही है l भारतीय पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि महामारी भी प्रकृति का स्वरूप है l आखिर कब तक सहन करेगी ये प्रकृति अपने ऊपर होते कुकृत्यो को… इसका परिणाम तो यहीं होना था l हम इंसानों ने कभी भी कुदरत को अपना मित्र नहीं माना l हमेशा उससे खिलवाड़ ही करते रहे l आगे निकलने की चाह में इंसान ईश्वर से भी दो दो हाथ करने को तैयार रहता है l अब भी समय है l कुदरत को साथ लेकर ही हमे चलना होगा l तभी हमारा सच्चा विकास संभव है l यदि अब भी हम कुदरत से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आये तो वह दिन दूर नहीं जब कोई महामारी इस इंसान को ही खत्म कर दे और रह जाये सिर्फ विकास और ये अट्टलिकाये l
राघव दुवे ‘ रघु’
महावीर नगर, इटावा ( उo प्रo)
8439401034