Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 May 2024 · 5 min read

महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय

महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय
भारत में आजादी के पहले और आजादी के बाद कई महान सपूत हुए जिन्होंने अपने बूते पर समाज को बदलने की कोशिश की, उन्ही सपूतों में से एक थे भारतीय जनता पार्टी के मार्ग दर्शक और नैतिक प्रेरणा के स्रोत पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी। पंडित जी ने अपने चिंतन और कार्य से केवल भारत माता का ही मस्तक ऊँचा नहीं किया बल्कि उनके द्वारा दिए गए ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन आज पूरे विश्व को एक जुटता के स्रोत में बांध रहा है।

पंडित जी बहुत ही सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। वे महान चिंतक प्रखर विचारक और उत्कृष्ट संगठनकर्ता थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को नये युग के अनुरूप प्रस्तुत किया और भारत को ‘एकात्म मानववाद’ जैसी प्रगतिशील विचारधारा दिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म मथुरा के एक छोटे से गाँव ‘नंगलाचंद्रा भाल’ में 25 सितंबर 1916 को हुआ था। बचपन से ही उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। सात वर्ष की छोटी अवस्था में ही उनके सिर पर से माता–पिता का साया हट गया परन्तु उन्होंने इन सभी की चिंता किये बिना अपनी पढाई पूरी की। कहा जाता है की सोना को जितना ही आग में तपाया जाता है उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक उसी प्रकार पंडित जी भी अपनी कठिनाइयों की आग में तपकर और भी चमकते जा रहे थे। पंडित जी राजस्थान बोर्ड से हाई स्कूल की परीक्षा सनˎ 1935 और इंटरमीडियट की परीक्षा पिलानी से सनˎ 1937 में प्रथम श्रेणी से पास किये। दोनों परीक्षाओं में उन्हें स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ। राजस्थान के सीकर के महाराज कल्याण सिंह की ओर से उन्हें छात्रवृति दिया गया था। इसके पश्चात् वे स्नातक की पढाई के लिए एस.डी. कालेज, कानपुर चले गए और वहाँ से वे प्रथम श्रेणी में स्नातक की परीक्षा पास किए लेकिन कुछ कारणों से वे एम.ए की पढाई पूरी नहीं कर सके। उसी दौरान वे ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के सम्पर्क में आए और उसके कार्यसेवा और विचारधारा से प्रभावित होकर ‘संघ’ के लिए कार्य करना शुरू कर दिए। सनˎ 1942 में वे संघ के पूर्णकालीन कार्यकर्ता बन गए। उसके बाद उन्हें लखीमपुर में जिला प्रचारक नियुक्त किया गया। दीनदयाल जी कुशल संगठक होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली लेखक और पत्रकार भी थे। उन्होंने लखनऊ में ‘राष्ट्रधर्म’ प्रकाशन की स्थापना की जिसके फलस्वरूप अपने स्वतंत्र विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ की शुरुआत की इसके आलावा उन्होंने ‘पांचजन्य’ पत्रिका और ‘स्वदेश’ दैनिक की शुरुआत की। सनˎ 1951 में जब डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की तब पंडित दीनदयाल उसमें सक्रिय हो गए और उतरप्रदेश में उनकों प्रथम महामंत्री बनाया गया। बाद में वे भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय ‘महामंत्री’ बनये गए। उन्होंने अपना दायित्व इतनी कुशलता के साथ निभाया की डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने उनसे प्रभावित होकर कहा कि ‘यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाए तो मैं इस देश का राजनीतिक नक्शा ही बदल दूंगा’। पंडित जी को साहित्य से भी लगाव था, शायद इसलिए वे साहित्य से भी जुड़े रहे। उनके हिन्दी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने केवल एक बैठक में ही ‘चन्द्रगुप्त नाटक’ लिख डाला था।

पंडित जी के सिद्धान्तों को समझने के लिए यहाँ एक घटना का जिक्र आवश्यक है। एक बार वे जब रेल यात्रा कर रहे थे, संयोगवश उसी रेलगाड़ी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय संघ संचालक परम पूजनीय ‘माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर’ जी भी यात्रा कर रहे थे। जब गुरुजी को यह पता चला की पंडित जी भी इसी रेलगाड़ी में हैं तो उन्होंने संदेश भेज कर पंडितजी को अपने पास बुलाया। पंडितजी आए और लगभग एक घंटे तक द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में गुरूजी के साथ विचार-विमर्श करते रहे। विचार-विमर्श के पश्चात् वे आने वाले स्टेशन पर अपने डिब्बे में जाते समय द्वितीय श्रेणी के टी.टी.ई के पास गए और बोले श्रीराम जी मैंने लगभग एक घंटे तक द्वतीय श्रेणी में यात्रा की है, जबकि मेरे पास तृतीय श्रेणी के टिकट है अतः नियमानुसार मेरा एक घंटे का जो किराया बनता है वह ले लीजिये। टी.टी.ई ने कहा कोई बात नहीं लेकिन पंडित जी नहीं माने। फिर टी.टी.ई विवश होकर हिसाब लगाया और कुछ राशि पंडित जी से ले ली, परन्तु टी.टी.ई यह सोचने पर विवश हो गया कि इमान्दारी का ऐसा आदर्श प्रस्तुत करने वाला वह व्यक्ति है कौन? जब कुछ स्टेशन बाद पंडितजी उतरे तो टी.टी.ई ने देखा की सैकडों कार्यकर्ता स्टेशन पर उनके स्वागत के लिए आए हुए हैं। वह चकित हो गया कि ये तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी थे। पंडितजी अन्य कार्यो की तुलना में देश की सेवा को सर्व श्रेष्ठ मानते थे। उन्होंने कहा था कि “हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारतमाता है, केवल भारत नहीं, माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बन कर रह जाएगा।”

दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवन दर्शन का पहला सूत्र है “भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की यह भावना रखने वाला मानव समूह एक जन है। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन, सब भारतीय संस्कृति है। इसलिये भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यही संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।” पंडित दीनदयाल जी की एक और बात उन्हें सबसे अलग करती है ‘उनकी सादगी’। पंडित दीनदयाल जी राष्ट्रनिर्माण के कुशल शिल्पियों में से एक थे। व्यक्तिगत जीवन तथा राजनीति में सिद्धांत और व्यवहार में समानता रखने वाले इस महान व्यक्ति को काफी विरोधों का सामना करना पड़ा था लेकिन राष्ट्रभक्ति ही जिसका उद्देश्य हो, ऐसे महापुरुष को उसके पथ से कोई भी विचलित नहीं कर सकता है।

‘मानव एकात्मवाद’- मानव जीवन और सम्पूर्ण सृष्टी, एकमात्र सम्बन्धों का दर्शन है। इसका वैज्ञानिक विवेचन पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने किया था। मानव एकात्मवाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक दर्शन है। यह दर्शन पंडित जी के सन् 1965 के मुंबई में दिये गये चार व्याख्यानों में सामिल था। वहाँ उपस्थित सभी प्रतिनिधिओं ने एक स्वर से एकात्म मानव दर्शन को स्वीकार किया था। एकात्म मानववाद एक ऐसी धारणा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा हुआ एक परिवार, परिवार से जुड़ा एक समाज, जाति, राष्ट्र, विश्व और अनंत ब्रह्माण्ड समाहित है। इस प्रकार पंडित जी का दर्शन भारत की प्रकृति से जुड़ा हुआ दर्शन है। जिस दिन इस दर्शन पर विचार कर पूरा देश एक साथ जुड़ जाएगा वो दिन भी अब आने के लिए तैयार खड़ा है। पंडित जी की असमय मृत्यु से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जिस धरती पर पंडित जी भारतीय राजनीति को ले जाना चाहते थे, वह धरती हिन्दुत्व की थी, जिसका संकेत उन्होंने अपनी कुछ कृतियों में दे दिया था।

उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के नाम हैं
1. ‘दो योजनायें’
2. ‘राजनितिक डायरी’
3. ‘भारतीय अर्थनीति का अवमूल्य’
4. ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’
5. ‘जगतगुरु शंकराचार्य’
6. ‘एकात्म मानववाद’ और
7. ‘राष्ट्र जीवन की दशा’।

11 फरवरी सन् 1968 को मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी और फिर एक बार हत्यारिन भारतीय राजनीति ने एक महान आत्मा के सांसारिक यात्रा का अंत कर दिया।

जय हिन्द

Language: Hindi
2 Likes · 102 Views

You may also like these posts

हो तन मालिन जब फूलों का, दोषी भौंरा हो जाता है।
हो तन मालिन जब फूलों का, दोषी भौंरा हो जाता है।
दीपक झा रुद्रा
" धीरे-धीरे"
Dr. Kishan tandon kranti
नारी शक्ति.....एक सच
नारी शक्ति.....एक सच
Neeraj Agarwal
वसंत - फाग का राग है
वसंत - फाग का राग है
Atul "Krishn"
दुखड़े   छुपाकर  आ  गया।
दुखड़े छुपाकर आ गया।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
धनुष वर्ण पिरामिड
धनुष वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
कहो जय भीम
कहो जय भीम
Jayvind Singh Ngariya Ji Datia MP 475661
कहनी चाही कभी जो दिल की बात...
कहनी चाही कभी जो दिल की बात...
Sunil Suman
ढ़ांचा एक सा
ढ़ांचा एक सा
Pratibha Pandey
उॅंगली मेरी ओर उठी
उॅंगली मेरी ओर उठी
महेश चन्द्र त्रिपाठी
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
Sanjay ' शून्य'
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का इतिहास (संस्मरण /लेख)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का इतिहास (संस्मरण /लेख)
Ravi Prakash
💪         नाम है भगत सिंह
💪 नाम है भगत सिंह
Sunny kumar kabira
एक मौके की तलाश
एक मौके की तलाश
Sonam Puneet Dubey
3303.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3303.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
भोपाल गैस काण्ड
भोपाल गैस काण्ड
Shriyansh Gupta
मन
मन
MEENU SHARMA
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सोच के दायरे
सोच के दायरे
Dr fauzia Naseem shad
हार हमने नहीं मानी है
हार हमने नहीं मानी है
संजय कुमार संजू
कोरोना
कोरोना
Nitesh Shah
तेरी कुर्बत में
तेरी कुर्बत में
हिमांशु Kulshrestha
जय हिंदी
जय हिंदी
*प्रणय*
माँ दया तेरी जिस पर होती
माँ दया तेरी जिस पर होती
Basant Bhagawan Roy
कहना तो बहुत कुछ है
कहना तो बहुत कुछ है
पूर्वार्थ
कविता
कविता
Nmita Sharma
थकान...!!
थकान...!!
Ravi Betulwala
তারিখ
তারিখ
Otteri Selvakumar
वक्त को पीछे छोड़ दिया
वक्त को पीछे छोड़ दिया
Dheerja Sharma
7) पूछ रहा है दिल
7) पूछ रहा है दिल
पूनम झा 'प्रथमा'
Loading...