महाभुजंगप्रयात सवैया
महाभुजंगप्रयात सवैया
१)
सदा पंथ की धूल माथे सजाये, नए पंथ की सर्जना कीजियेगा ।
सुधा बाँटियेगा सभी मे सदा और प्याले विषैले स्वयं पीजियेगा ।
स्वयं के दुखों को भुलाके हमेशा सभी के दुखों को चुरा लीजियेगा ।
कहीं भी अँधेरा दिखे मुस्कुराता वहीं दीप कोई जला दीजियेगा ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’
२)
खिलो तो खिलो यों कि झूमें दिशाएँ, न दुर्गंध दुर्भावना की मिलाना ।
जलाना सदा नेह के दीप यारों, किसी जिंदगी का अंधेरा मिटाना ।
सदा मुस्कुराना कि कोई न रूठे, दुखों में न रोना न आँसू बहाना ।
कभी द्वेष के कंटकों को न बोना, सदा प्रेम के पुष्प बोना उगाना ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’