महाभारत नहीं रुका था
बहुत ही प्रयत्न किया था श्री कृष्ण ने
पर यह जिद्दी दुर्योधन नहीं झुका था
सत्य असत्य की थी यह बड़ी लड़ाई
चाह कर भी महाभारत नहीं रुका था
जिनमें था प्रेम और श्रद्धा का भाव
मध्य खींची थी अनुशासन की रेखा
उन्हें एक दूसरे पर खुला वार करते
खुली ऑंखों से सब लोगों ने देखा
यहां सब कुछ उल्टा पुल्टा देख कर
बासुदेव कृष्ण खड़ा मुस्कुरा रहा था
इस युद्ध में आगे बढ़ बढ़ कर सब
जैसे मातृभूमि का ऋण चुका रहा था
युद्ध को जीतने की जिद्द में दुर्योधन
अब भूल चुका था सभी का सम्मान
हस्तिनापुर सिंहासन की प्रतिबद्धता में
देवव्रत भीष्म ने संभाला था कमान
जहां गुरु द्रोण भी राजगुरु धर्म निभा
अपने पुत्र अश्वत्थामा संग डटा रहा
वहीं कर्ण अपनी मित्रता के कारण
असत्य के साथ अन्त तक सटा रहा
महाराज धृतराष्ट्र तो अंधा बनकर
बस अपना पिता धर्म निभा रहे थे
युद्ध में दुर्योधन की हार न हो जाय
इसलिए पाण्डु पुत्र नहीं भा रहे थे
लेकिन परिणाम तो होना है वही जो
विधि ने बहुत पहले ही लिख डाला है
इस बीच सभी योद्धाओं के चेहरे का
अब असली रंग भी निखरने वाला है