महापंडित ठाकुर टीकाराम
भाग 03
महापंडित ठाकुर टीकाराम (18वीं सदीमे वैद्यनाथ मंदिर के प्रधान पुरोहित)
टीकाराम जी वैद्यनाथ पहुँचलाह आ देखलन जे बहुत रास अनियमितताक प्रचलन भऽ गेल हैँ। मठक किछ अंचल सम्पत्ति बिका चुकल छै । मठक अधिकांश जमीन पे खेती नहि भऽ रहल हबै !
पारस्परिक द्वन्द्व मे फंसल चिंतित वरिष्ठ-जन आगंतुक तीर्थयात्री के संकटक कारक बनल हबै |
घाटवाली स्टेट प्रभुत्व वाला एहि ‘परगना देवघर’ मे 15 टा पैघ गाम छल। रोहिणी (जतह १८५७ की महाविद्रोह भेल ), साल्टर (सतार), सिमराह (सिमरा), तिलजुरी, पुनासी, सरैया, बेलिया, तुरी,बोनेती (बनहेती),डुमरा, गमरडीह, कुकरा, सरदाहा, तरवैद, जरुलिया (जरुआडीह वा जरलाही) ई नाम के गाम छल। एकर अतिरिक्त किछ गाम वैद्यनाथ मन्दिरक नियंत्रणमे छल जकरा ‘खालसा’ गाम कहल गेल । किछ खेती योग्य छल आ किछ परता जाहिमे खेती नहि होइत रहै | उपरोक्त घाटवाली गाम सभमे सेहो बाबा वैद्यनाथ मंदिर केँ दान कएल गेल जमीन छल, जकर उपजा से मठक परम्पराक निर्वहन होइत रहै आ एतए आइल तीर्थयात्रीक भोजनक व्यवस्था ‘भोग’ रूपमे कएल जाइत छल। एकर अतिरिक्त किछ दाताव्य ग्राम (दान गाम) सेहो छल जकरा शिवोत्तर/देवोत्तरक दर्जा छल। ई परंपरा बहुत पुरान हलन। उपरोक्त देवोत्तर गामक लोक अपन रोजी-रोटीक लेल वैद्यनाथ मन्दिरक मठक मुखिया पर निर्भर रहैत रहै।
बाबा वैद्यनाथक प्रथान अतिरिक्त एहि मठसँ जुड़ल लोक घनघोर जंगलक बीचमे अवस्थित एहि जमीन पर रहैत छल। एहिमे नाथ सम्प्रदायक योगी आ किछ बंगाली ब्राह्मण आ कायस्थ सेहो छलाह। नाथ योगी लोकनिक किछ खेती योग्य जमीन छल। मंदिरक आमदनीसँ सेहो किछ नै किछ भेटि जाइत रहै । हिनका लोकनिक अधिकांश सहयोग जह्नुगिरी(वर्तमान सुल्तानगंज) केर स्थानीय अखाड़ा सँ भेटल छल, जे नाथपंथ क्षेत्रक सफल आसनक रूप मे मान्यता प्राप्त छल। वैद्यनाथ मठक पश्चिमी द्वार लग रहैत छलाह। एकर अतिरिक्त छोट-छोट कुल मे आन कतेको ठाम पसरल छल। सभ गोरक्षपीठसँ जुड़ल छलाह।
ओहि समय एहि क्षेत्रमे आदिवासीक बहुमत नहि छल। सब ठाम पहाड़ी नियंत्रण मे छल। पहाड़ आ जंगल मे बाघ, चीता, गैंडा, हाथी, भालू आदि जानवरक प्रचुरता छल। खजूर प्रायः देखल जाइत छल, जकर जानकारी विभिन्न शिलालेख मे भेटैत हबै | दुशासनक वंशज आबादी सेहो एहि क्षेत्रक जंगलमे रहैत छल, जकरा गिद्धौर चन्देलवंशी क्षत्रिय सभ छीनि कऽ वनवासी बनबा लेल बाध्य कऽ देलक। एहि सभ परिस्थितिक बादो माल पहाड़ी मे ऊँच-ऊँच ताड़ आ ताड़क गाछ पर चढ़ि के रस संग्रह करयवाली दुस्सासनी क्षत्रियक ई उपजाति सेहो एहि मठ सँ जुड़ल छल आ समकालीन आय अर्जित करैत छल। मन्दिरमे दैनिक अनुष्ठानक समय ढोल-नगाड़ा बजबैत छल । नवद (शहनाई सदृश वाद्य) क परंपरा बहुत बाद मे शुरू भेल।
पुरोहित लोकनिक बीच झगड़ा-झंझटि सँ मन्दिर व्यवस्था पर बुरा असर पड़ल। मंदिरक दैनिक परम्परा सँ जुड़ल सह-व्यावसायिक लोकनि सेहो दुखी छलाह।
टीकाराम जीक एतय सँ बाहर रहबाक कारण जे अराजकता उत्पन्न भेल छल ताहि सँ जौं कियो बेसी प्रभावित भेलाह तँ ओ रहैत नारायण दत्त।ओ देवकीनन्दनक जान लेबाक भयसँ जंगलमे वनवासी सभक संग रहबाक लेल बाध्य भेलाह। ई सभ अराजकता देखि मठक प्रधान ठाकुर टीकाराम बहुत परेशान भऽ गेलाह। ओ मठ प्रथान रहैते। हुनका चुनौती देबय बला कियो नहि छलनि। चूँकि ओ मठ-उच्चैर्वे के पद पर छला तेँ एकरा सब के एकटा नव आस्पद(उपनाम) सँ सजाओल गेल छल | जेकरा ‘ओझा’ कहलऽ जाय छेलै, ओकरऽ प्रचलन छेलै । ई आस्पद अखनो हुनक वंशज मे अपभ्रंश रूप मे उपस्थित अछि। हुनकर वंशज आब अपन नामक संग ‘झा’ आस्पद लगा लैबत है। मुदा, उपाध्याय आ महामहोपाध्याय केर उच्च पदक कारण किछ कुल मे प्रचलित ओझा अस्पदक नाम सँ पहिने आ नामक बाद ‘ठाकुर’ उपाधि लगेबाक परंपरा स्वयं तिरहुत (मिथिला) सँ हिनका लोकनिक संग छल !
एहि कालखंड मे एकटा महत्वपूर्ण घटना घटल। वर्ष 1748 सँ एहि क्षेत्र पर अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व मे अफगान के हमला भऽ रहल छल। तखन ई क्षेत्र अलीवर्दी खानक प्रभाव मे छल। गिद्धौरक राजा अब्दालीकेँ भीतरसँ सहारा दऽ रहल छलाह। ओकर पड़ोसी खड़गपुर स्टेट संग्राम सिंहक वंशज मुसलमान भऽ गेल छल आ मुगलक संग छल मुदा आन्तरिक निष्ठा अफगानक संग छल। संग्रामक वंशज लोकनि कल्पना नहि केने छलाह जे एकर परिणाम कतेक खतरनाक होइ ।
उदय शंकर
लेखक इतिहासकार अछि
#वैद्यनाथ_मन्दिर_कथा 03
क्रमशः
छवि : 1771 के रिकॉर्ड के अंश, पूर्व के बहुत दर्शक द्वारा पूर्ववत छल ।