महान है मेरे पिता
प्रणय- बंधन में बंधने के बाद
पुत्र बनकर मेरा पदार्पण हुआ
सर्जक हैं- मेरे पिता ।
मैं तो रोना जनता था केवल
हंसना – बोलना, पढ़ना- लिखना उन्होंने सिखाया
शिक्षक हैं- मेरे पिता ।
निर्भीक होकर चलना सिखाया
आत्मनिर्भर बन जीना सिखाया
शिल्पकार है- मेरे पिता ।
सभ्यता भरा, संस्कार भरा
जीवन के सभी रंग भरें
चित्रकार हैं- मेरे पिता ।
सोने का आभूषण बनाया
नग लगाया, मीना लगाया ।
सोनार हैं- मेरे पिता ।
आग में तपाया, पानी में डुबोया
अपने मन मुताबिक मुझे बनाया
लोहार हैं – मेरे पिता ।
मिट्टी लाकर लुगदी बनाया
चाक पर चढ़ाया, सांचे में ढाला, पकाया
कुम्हार हैं- मेरे पिता ।
सीधा-सादा गधा था बेचारा
शान से इंसान बनाया
गर्वीला हैं- मेरे पिता ।
खेतों में पसीना बहाया
फसल उगाकर घर लाया, खिलाया
किसान हैं- मेरे पिता।
जहां भी देखी गंदगी
झाड़ा- बुहारा, झोल उतारा, धोया
स्वच्छता- प्रेमी हैं- मेरे पिता ।
अपने -पराए सभी को सींचा
सुंदर- सुंदर सुमन खिलाए
माली हैं- मेरे पिता ।
सबकी सुनते, सबको समझते
जरूरत पड़ने पर कान भी पकड़वाते
न्यायाधीश हैं- मेरे पिता ।
कहानी लिखते, कविता लिखते
रंगमंच पर भूमिका भी करते
साहित्यकार हैं- मेरे पिता ।
दान उपकार परोपकार सिखाया
जन-जन का कल्याण सिखाया
धार्मिक हैं – मेरे पिता ।
कभी कोई कमी न दिखाया
कहां से/ कैसे पैसे आया? न बताया
महान हैं- मेरे पिता ।
_______________________
रचना- घनश्याम पोद्दार
(मौलिक स्वरचित अप्रकाशित)
संपर्क- घनश्याम पोद्दार
कासिम बाजार
(मध्य विद्यालय के सामने)
मुंगेर (बिहार). 811201
मो –
9939966328
दिनांक 14.06.2022