*महान साहित्यकार डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र के पत्र*
महान साहित्यकार डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र के पत्र
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मेरे पास 1990 में डॉ नागेंद्र का लिखा हुआ एक पोस्टकार्ड रखा हुआ है, जिसमें उन्होंने स्थानीय काव्यगोष्ठी में मुझे भी काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया था। मेरा जाना शायद नहीं हुआ था ।
डॉ नागेंद्र से मेरा निकट का संबंध रहा। उनकी अनेक पुस्तकों की मैंने समीक्षा लिखी है तथा वह हिंदी साप्ताहिक सहकारी युग में प्रकाशित हुई हैं। कुछ तो उनकी मौलिक कृतियाँ हैं कुछ उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हैं । पत्र – व्यवहार का अवसर तब आया ,जब डॉक्टर नागेंद्र स्थानीय जैन इंटर कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता के पद से रिटायर होने के बाद रामपुर से बरेली चले गए । गुर्दे खराब होने के कारण गंभीर रूप से वह अस्वस्थ हुए और मजबूरी में उन्हें रामपुर से बरेली शिफ्ट होना पड़ा क्योंकि डायलिसिस की सुविधा रामपुर में नहीं थी। यद्यपि रामपुर में ही उनका बसने का इरादा था और रामपुर में ही उन्होंने इंदिरा कॉलोनी में अपना घर भी बना लिया था । मनुष्य सोचता कुछ है ,और हो कुछ और जाता है। रिटायर होने के बाद होना तो यह चाहिए था कि व्यक्ति को शांति के साथ सुख – चैन की जिंदगी विश्राम पूर्वक बिताने का अवसर मिले तथा उसकी साहित्य साधना अनवरत रूप से आगे बढ़ती रहे । लेकिन होनी कुछ और ही होती है ।
मेरे पास डॉक्टर नागेंद्र का पहला पत्र 14 – 5 -2 009 का है तथा अंतिम पत्र 19 मई 2010 का आया है । इसके लगभग 2 महीने पश्चात जुलाई 2010 को आपका देहांत हो गया ।
पत्र व्यवहार अनायास आरंभ हो गया। नागेंद्र जी ने लिखा :-
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प्रभादीप , सी – 587 , राजेंद्र नगर ,बरेली
सम्मान्य बंधु रवि प्रकाश जी नमस्कार
जो दो पुस्तकें आपको प्राप्त हो रही हैं, यदि उचित लगे तो अपने विचार लिख कर अनुग्रहित करें ।स्वास्थ्य इतनी बुरी तरह से गिरा है कि बिना गाड़ी के रामपुर आना और आप जैसे महानुभावों से मिल पाना कठिन है । बैठे – बैठे कुछ लिखता – पढ़ता रहता हूँ। शेष शुभ ।
आपका अपना नागेंद्र 14 – 5 -2009
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दूसरा पत्र 14 -6 -2009 का है जिसमें आप लिखते हैं :-
“कल डायलिसिस से लौटने पर आप का लिफाफा मिला ,जिसे पाकर मैं दिन भर जो कष्ट पाया उसे भूल गया । इस भूलने के लिए ही तो जीवन भर साधना की है । आप साधक को पहचान रहे हैं ,यह साधक का सौभाग्य है । कुछ और अपनी कृतियाँ भेजने का विचार है । हो सकता है कि आपका स्वस्थ मनोरंजन हो सके। आपका पत्र पाकर मन प्रसन्न हो जाता है । समीक्षा “इस पार न कुछ , उस पार न कुछ” रुचिकर लगी है ।यदि संभव हो तो और भी लिखने का कष्ट करें । शेष शुभ ।
आपका नागेंद्र 14 – 6 – 2009
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फिर डॉक्टर नागेंद्र और मेरा लिखने – पढ़ने का आदान-प्रदान थोड़ा – बहुत चलता रहा । एक पत्र में उन्होंने लिखा :-
“कल 39 वां डायलिसिस होगा”
पत्र व्यवहार के बीच में ही उनका सौवाँ डायलिसिस भी हो गया । उन्होंने लिखा ” डायलिसिस प्रति तीसरे दिन चल रहा है । बस जी रहे हैं ।”
इस जीने के बीच में उनकी जीवित रहने की और जीवन में कुछ सार्थक कर पाने की मंगल आकांक्षा निरंतर मुखरित होती रही । यद्यपि वह भी जानते थे और मैं भी जानता था कि यह क्रम बहुत लंबा नहीं चल पाता है। अंतिम पत्र में उन्होंने लिख भी दिया :- “यह क्रम कितने दिन चलेगा ,कौन जान सकता है ? “
एक महत्वपूर्ण पत्र 1 – 8 – 2009 को आया । डॉ नागेंद्र ने लिखा :-
” आपको स्मरण होगा कि आपने पुस्तकालय के भाषण में कहा था, रामपुर से शोध प्रबंध आ रहे हैं यदि वे फोटोस्टेट रूप में मिल जाएँ तो उन्हें लाइब्रेरी में रखा जाए, जिससे भविष्य में उन्हें देखा जा सके । मुझे यह बात कल ही याद आई । सोचा आपको स्मरण कराया जाए । मेरे शोध प्रबंध सहित इस समय पाँच थीसिस हैं । यदि आप कहें/ आज्ञा दें ,तैयारी की जाए । 5 शोध प्रबंध की प्रष्ठ संख्या पंद्रह सौ के आसपास होगी। विचार कर लें । जैसी योजना हो ,बतला दें। सहयोग मिलेगा । शेष शुभ ।आपका नागेंद्र” 1 – 8 – 2009
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वास्तव में हमने 2007 से राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर शिशु निकेतन) को शोध प्रबंध पर आधारित एक गहन अध्ययन संस्थान के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी । योजना यह थी कि जो शोध प्रबंध हैं , उनकी फोटोस्टेट करा कर शोधकर्ता हमें उपलब्ध करा दें तथा इस कार्य में जो खर्च आए ,वह हम उनको दे देंगे। इस तरह जितने प्रष्ठों का कार्य रहेगा, उसी हिसाब से खर्च तय हो जाएगा। इस तरह पुस्तकालय को उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण गहन अध्ययन हेतु शोध संस्थान के रूप में विकसित करने की हमारी परिकल्पना थी तथा उसी के अनुसार हम 2007 के आरंभ से प्रयत्नशील थे । डॉ नागेंद्र हमारी इसी विचार – सारणी के अनुसार हमें सहयोग करने के इच्छुक थे। डॉ नागेंद्र ने हमारी योजना में अपनी ओर से अच्छा योगदान दिया। जितने शोध प्रबंध उनके पास उपलब्ध थे ,वह उन्होंने हमें फोटोस्टेट करा के तथा जिल्द तैयार करा के मात्र लागत – मूल्य पर ही उपलब्ध कराए थे । उनके योगदान से पुस्तकालय की शोध प्रबंध योजना को काफी बल मिला। कई वर्ष तक हमने इसी योजना पर कार्य किया और पुस्तकालय में गंभीर विद्यार्थी, जिनमें ज्ञान की पिपासा हो ,वह आएँ, बैठें, और अध्ययन करें ,इसके लिए हमारे नूतन प्रयास जारी रहे। ।
डॉ नागेंद्र के पत्रों में एक उल्लेख उनके द्वारा निकाली जाने वाली विश्वास पत्रिका के संचालन से भी है । डायलिसिस की कष्टदायक लड़ाई से गुजरते हुए भी वह समस्या पूर्ति के लिए दूसरों से मुक्तक मांगने की ओर अपना ध्यान लगाए हुए थे ,यह अपने आप में कोई कम आश्चर्य की बात नहीं थी ।
डॉ नागेंद्र के जीवन काल में ही हमने उन्हें रामप्रकाश सर्राफ लोकशिक्षा पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा कर दी थी । इस पुरस्कार के अंतर्गत पाँच हजार रुपए (₹5000)की नगद धनराशि प्रदान की जाती थी तथा सम्मान – पत्र पढ़कर सुनाया जाता था और भेंट किया जाता था । डॉ नागेंद्र की मृत्यु के बाद हमने सम्मान पत्र के स्थान पर सम्मान – पत्रिका प्रकाशित की ,जिसमें उनके साहित्यिक योगदान के साथ-साथ कुछ पुस्तकों की समीक्षा भी प्रकाशित हुई थी । इसी पत्रिका में उनके पत्र भी छपे थे ।समारोह में उनकी पत्नी ने उपस्थित होकर पुरस्कार ग्रहण किया था ,यह हमारे लिए बहुत संतोष तथा कृतज्ञता की बात रही । डॉ नागेंद्र की स्मृति को शत शत प्रणाम ।।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451