महान शाइर भारत भूषण पन्त जी (संस्मरण)
आज 9 फ़रवरी 2021 ई. को अपने कम्प्यूटर पर ‘रेख़्ता वेबसाइट’ पर मैंने भारत भूषण पन्त जी की ग़ज़लों को पढ़ने के लिए ज्यों ही माउस से इनका पृष्ठ क्लिक किया, तो मैं इनकी टाइम लाइन (1958–2019) देखकर चौंक गया। क्या लखनऊ का ये महान शा’इर गुमनाम ही गुज़र गया। स्मृति में कुछ यादें अनयास ही तैर गईं। जिन्हें मैं अपने पाठकों से शेयर कर रहा हूँ।
भारत भूषण पन्त जी गुज़र गए। इनका निधन: 12 नवंबर 2019, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनका जन्म: 03 जून 1958, देहरादून, उत्तराखण्ड में हुआ था। इन्होंने ‘धोका’ (2007) मूवी में शीर्षक गीत रचा था। पूजा भट्ट का निर्देशन था। जिसका संगीत एम. एम. करीम ने दिया था। जिसके गायक थे रफ़ाक़त अली ख़ान। जिसके बोल थे:—
ग़ैरों से क्या शिकवा करे, अपने धोका देते हैं
अक्सर ये जान पहचाने, चेहरे धोका देते हैं
भारत भूषण पन्त जी ने ‘तन्हाइयाँ कहती हैं’ (2005) और ‘बे-चेहरगी’ (2010) (दो ग़ज़ल संग्रह) रचे थे। जो एक ही ज़िल्द में हिन्दी (देवनागरी लिपि) और उर्दू (फ़ारसी-अरबी लिपि) में प्रकाशित हुई थी। ये दोनों ग़ज़ल संग्रह सर जी ने मुझे स्नेह और आशीर्वाद के साथ डाक द्वारा भेजे थे। पन्त जी और मुन्नवर राणा जी के उस्ताद (गुरु) ‘वाली आसी’ एक ही थे। यानि दोनों शा’इरी में गुरुभाई हैं। महेश भट्ट जब भी लखनऊ आते थे तो होटल में पन्त जी को विशेष तौर पर बुलवाकर उन से उनकी ग़ज़लें सुनते थे। मूवी ‘धोका’ के ‘शीर्षिक’ गीत के लिए भट्ट साहब ने पन्त जी को पचास हज़ार रूपये दिए थे। कुछ फ़िल्मों में पन्त जी का नाम स्क्रीनप्ले के क्रेडिट में भी दिया था महेश भट्ट जी ने। एक बार फ़ोन पर पन्त जी से लम्बी बातचीत (लगभग एक घण्टे तक) हुई थी मेरी उनसे। तब उन्होंने बताया था कि, “फ़िल्मी दुनिया का उनका अनुभव कोई अच्छा नहीं है।”
इनकी ग़ज़लें पहली बार मैंने लफ़्ज़ (त्रैमासिक पत्रिका) सम्पादक तुफैल (विनय कृष्ण) चतुर्वेदी में पढ़ी थी। और उसी में इनका फ़ोन न. दिया हुआ था। इस तरह इस लखनऊ के महान शा’इर से मेरा परिचय हुआ था। पन्त जी को मैंने भी अपना ग़ज़ल संग्रह ‘आग का दरिया’ (2009) और कहानियों की किताब ‘तीन पीढियां: तीन कथाकार’ (2011) भेजी थी। जिसे कथा संसार (त्रैमासिक पत्रिका, ग़ाज़ियाबाद) सुरन्जन ने सम्पादित किया था। इसमें प्रेमचन्द, मोहन राकेश और मेरी चार-चार कहानियाँ थी। पन्त जी को मेरे प्रयास पसन्द आये थे। शेष फिर कभी। दुःख इस बात का है कि उनकी मृत्यु का पता मुझे 15 महीने बाद आज ही मालूम हुआ। इसलिए भारी मन से लिखने बैठ गया हूँ।
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