महान गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस की काव्यमय जीवनी (पुस्तक-समीक्षा)
महान गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस की काव्यमय जीवनी (पुस्तक-समीक्षा)
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पुस्तक का नाम : श्री रामकृष्ण चरितावली
रचनाकाल : 2-2-1982 से 5-3-1983
कृतिकार : सुरेश अधीर
संस्करण : प्रथम 2019
पुस्तक प्राप्ति का स्थान : 14 बी ,तिलक नगर ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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श्री सुरेश अधीर बहुत ही सज्जन और सरल व्यक्ति हैं ।उनमें न कोई अभिमान है और न स्वयं को बड़ा दिखाने अथवा घोषित करने की लालसा है। सादगी उनके स्वभाव में बसी हुई है ।इसी सादगी से ओतप्रोत उनकी काव्य पुस्तक है “श्री रामकृष्ण चरितावली ”
35 वर्ष पहले उन्होंने यह पुस्तक लिखी और लिखने के बाद जैसा प्रायः सभी रचनाकारों के साथ होता है ,छपने का अवसर नहीं आया । 35 वर्ष के बाद जब पृष्ठ सामने आए ,प्रकाशन का संयोग बना तो सुरेश अधीर जी ने यही उचित समझा कि यह पुस्तक 35 वर्ष पूर्व जैसी लिखी गई थी वैसी ही छप जाए । स्वयं उन्होंने लिखा है “यह खदानों से निकले ऐसे हीरे हैं जिन्हें तराशा नहीं गया है क्योंकि तराशने में मूल मिट जाता है।”
यह तो सुरेश जी की अपनी अवधारणा है ,जबकि रामपुर के ही एक अन्य प्रसिद्ध कवि हुए हैं स्वर्गीय श्री कल्याण कुमार जैन शशि जिन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था “खराद”। उसकी एक टेक पंक्ति थी “जो खराद पर चढ़े ,चमक उन हीरों पर आई है ”
हीरे तराशे जाने चाहिए और उन्हें खराद पर चढ़ाने से ही उनका मूल्य बढ़ता है।खैर, रामकृष्ण परमहंस से जो आध्यात्मिक समीपता सुरेश जी की रही उसी के कारण इस काव्य रचना का प्रकाश में आना संभव हो सका ।
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आध्यात्मिक इतिहास में बहु युग या अवतार
अब तक कोई ना हुआ जो ठाकुर से पार
(पृष्ठ 11)
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अर्थात आध्यात्मिक जगत में रामकृष्ण परमहंस सर्वोच्च आसन पर विराजमान हैं। रामकृष्ण परमहंस की साधना भक्ति मय है। प्रेम में विभोर होकर उन्होंने काली मां की उपासना की और अंततः प्रेम और समर्पण की शक्ति के बल पर काली मां को साक्षात प्राप्त किया। इन्हीं भावों को व्यक्त करते हुए कवि ने लिखा है-
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एक बार जो प्रेम से , रोकर करे पुकार
फिर प्रभु छिप सकते नहीं, निश्चय ही साकार
(पृष्ठ 58)
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सब कहते हमको मिले, पत्नी सुत धन धान
पर हमको ईश्वर मिले , कौन कहे इन्सान
(पृष्ठ 58)
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छोटे-छोटे दोहों के माध्यम से रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक चेतना को पाठकों तक पहुंचाने का काम कवि सुरेश अधीर के द्वारा किया जाता रहा । परमात्मा से मिलन एक गहरा आध्यात्मिक विषय है ।यह आसानी से समझ में आने वाला नहीं है ।इसी भाव को कवि लिखते हैं –
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विषय भोग सब कुछ नहीं, मिलन आत्मिक
गूढ़
रामकृष्ण जाना इसे., हँसें न समझें मूढ़
(पृष्ठ 124 )
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राम नाम भजन करूं, राम नाम जलपान
राम नाम की श्वास लूँ, राम नाम सुनुं कान
( पृष्ठ 135)
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इस प्रकार सहज भाषा में और खड़ी बोली के साथ साथ लोक भाषा के शब्दों का बहुतायत से प्रयोग करते हुए कवि ने अपनी बात पाठकों तक पहुंचाई है।
रामकृष्ण परमहंस का जीवन वास्तव में एक श्रेष्ठ गुरु का जीवन रहा है । एक ऐसा गुरु जिसने स्वामी विवेकानंद का निर्माण किया तथा उन्हें आध्यात्मिक अनुभव से भरा। कवि सुरेश अधीर के इस प्रयास की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे चरित्र का यशगान किया है जो आज भी गुरु परंपरा में हमें मार्गदर्शन प्रदान करने में समर्थ है।
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समीक्षक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश// मोबाइल 99976 15451