महानायक दशानन रावण/ mahanayak dashanan rawan 01 by karan Bansiboreliya
बुराइयों को मेरी सब ने अब तक है याद किया…
अच्छाइयों को मेरी सब ने अब तक नजर अंदाज किया…
राक्षस पुत्र होकर मैंने वेदों का पठन किया
इंद्रजाल तंत्र, सम्मोहन मंत्र, चार वेद,
ज्योतिष विद्या, सबको कंठस्क किया…
देव को, दानव को, काल को, ग्रहों की चाल को,
अपने वश में किया…
महाकाल को भी मैंने अपनी भक्ति से प्रसन्न में किया…
शक्ति परीक्षण के लिए कैलाश उठा लिया था…
शिव ने मेरा भ्रम एक पल में तोड़ दिया था…
अपनी रक्षा के लिए मैंने शिव का बखान किया था…
बखान ही शिव स्त्रोत के नाम से जाना जाएगा
ऐसा वरदान मेरे शिव ने दिया…
कठोर जप-तप से मैंने शिव को प्रसन्न किया…
चंद्रहास खड़क, सोने की लंका, दशानन का नाम,
प्रथम शिव भक्त का स्थान दिया…
सीता को हर कर जब लंका ले आया था…
ये गलत किया है मैंने सब ने बताया था…
बहन के प्रतिशोध में, मैं कुछ ना समझ पाया था…
लक्ष्मी स्वरूपा को मैं बंदी बना लाया था…
एक वर्ष तक रही जानकी मेरे पास में…
जरा भी फर्क नहीं आया मेरे एहसास में…
डराता था, धमकाता था, मृत्यु का भय बताता था,
पटरानी बनने को कहा करता था…
जब भी जाता मां सीता से मिलने
पत्नी को ले जाया करता था…
शक्ति को देख मेरी जमीन पर विष्णु उतर आए थे…
साथ उनके मेरे महाकाल भी आए थे…
कोई मानव,कोई वानर, कोई भालू, कोई पक्षी,
सब को ले आए थे…
कल्की मेरा वध करने नंगे पांव आए थे…
युद्ध में सब हार गया…
भाई बंधुओं, सगे संबंधी, धन संपत्ति, वैभव,
सब एक जिद पर वार दिया…
भेद ना बताया होता विभीषण ने…
मुझे हराया ना होता श्री राम ने…
ज्ञान की कमी थी लक्ष्मण में…
ज्ञान दिया लक्ष्मण को मैंने रण में…
अपना कभी हारता नहीं अपनों के साथ…
तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ था तुम्हारी विजय हुई…
मेरा भाई मेरे साथ ना था इसलिए मेरी पराजय हुई…
काल नहीं महाकाल पर भी विजय थी मेरी…
सूर्य भी मुझसे पूछ कर निकलता इतनी धाक थीं मेरी…
विष्णु ही राम थे शिव ही हनुमान थे पहले से पता था…
देख भगवान को युद्ध में,मैं कभी ना डरा था…
भक्ति की शक्ति थी शिव का प्रताप था…
सब पहले से ही विधाता ने रचा था…
मैं तो बस आधार था…
©Karan Bansiboreliya (kb shayar 2.0)
® Ujjain MP
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