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13 Jun 2023 · 1 min read

महानगर की पहचान

महानगर के पास न मन है
न ही मनोविज्ञान
संवेदनशून्यता बन गई
है इसकी पहचान

महानगर का हर मनुष्य ज्यों
मूल्यवान रोबोट
तना तनावों में रहता वह
परिजन करते चोट
जारी रहता जिजीविषा का
पल-अनुपल अवसान

सृजन नहीं उत्पादन में रत
रहता हर बीमार
उर्वशियों के सम्मुख सकता
हर आवरण उतार
लेती लूट निमिष भर में ही
इसे कृत्रिम मुसकान

यांत्रिकता कर देती इसकी
हर अच्छाई न्यून
अम्बर से अवसाद बरसते
खिलें न हृदय प्रसून
आरोपित संस्कारों से हर
आनन रहता म्लान ।

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
212 Views
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