महानगरो का जीवन
महानगरो के लोग
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महानगरो के लोग
बहुत जल्दी में हे
किसी के पास भी
समय नहीं हे।
जिंदगी की भागमभाग में
खो गए हे
भूल चुके हे ये भी
क्यों जी रहे हे?
और इन बड़े बड़े शहरो में
न खुद के लिए समय हे
न सुकून ,न फुरसत
जिंदगी खो सी गयी हे।
न पंछी हे,न दरिया हे
न तितली हे,न बगिया हे
मौसम बदले,न बदले
इन्हें क्या?
सूरज निकले या न निकले
इन्हें क्या?
पेड़ो की वो मधुर छाँव
सो गयी हे
चेहरों की मुस्कान
खो गयी हे
न धरती हे,न आसमान हे
बहुत काम हे भाई,बस काम हे
न प्रीत हे,न प्यार हे
न मीत हे ,न यार हे
न गीत हे,न तान हे
न आँखे हे,न कान हे
बस चाहत हे आगे बढ़ने की
बस आदत हे इन्हें लड़ने की
अपना घर बचा रहे
पडोसी जलता रहे
इन्हें क्या?
अपनी जेबें भरी रहे
गरीब आँखे मलता रहे
इन्हें क्या?
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