महानगरीय जीवन
महानगर में बढ़ रहा , घोर प्रदूषण आज।
हवा जहर से है भरा , धूल-धुआँ का राज।।
मेला सोशल मीडिया , तनहा है इंसान।
इयर फ़ोन हटता नहीं , करते खराब कान।।
बर्गर , पिज़्ज़ा , चाउमिन , करते सभी पसंद।
नकली वाटर फॉल का , लेते हैं आनंद।।
भूल गए हैं सब यहाँ , रामायण का पाठ।
धर्म-कर्म के नाम पर , देखे अपना ठाठ।।
घायल मानव सड़क पर , करें नहीं सहयोग।
महानगर में बस रहे , पत्थर जैसे लोग।।
सब बच्चों के पास है , मोबाइल में खेल।
बाहर जाकर खेलना , बंद हुआ है मेल।।
महानगर में बढ़ रहे ,तरह- तरह के रोग।
मतलब रखते ही नहीं , इक दूजे से लोग।।
छोटे कपड़े पहनकर , भूले है संस्कार।
दिल बहलाने के लिए , जाते डांस बार।।
महानगर में है सभी , सुख-सुविधा भरपूर।
हरियाली से हम मगर , होते जाते दूर।।
महानगर अच्छा बुरा , मिला-जुला है रूप।
दूर बुराई को करें ,सुन्दर बने स्वरूप।।
-वेधा सिंह