Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jul 2023 · 6 min read

#महाधूर्त

🔥 #महाधूर्त 🔥

विभिन्न अदालतों में याचिका लगाई जा रही हैं कि अमुक-अमुक भवन हमारा है। इन्हें हमें सौंपा जाए। यह मांग सर्वथा अनुचित है। ऐसा नहीं होना चाहिए।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी और इस चतुर्युगी के महानायक सुदर्शनचक्रधारी श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा के विवाद अदालतों के समक्ष विचाराधीन हैं। वादी पक्ष की यह घोर चूक है। अदालतों से यह वाद तुरंत लौटाने चाहिएं।

कुछ सयाने लोगों का कहना है कि भगवान से पहले भोजन मिलना चाहिए और कई बुद्धिमान बता रहे हैं कि वर्तमान शासक अपनी असफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए अपने लोगों द्वारा इन विवादों को भड़का रहे हैं।

वहीं ऐसे भी पुरुष हैं जिनकी मान्यता है कि अयोध्या काशी मथुरा पर संतोष करना चाहिए। सभी समुदायों में भाईचारा बना रहना चाहिए।

जो लोग समाचारपत्र पढ़ा करते हैं अथवा जो लोग रेडियो से समाचार सुना करते हैं अथवा जो लोग तलवीक्ष्ण से समाचार देखा करते हैं अथवा जिनके हाथों में यह नन्हा-सा चलभाषी नामक यंत्र है वे जानते हैं कि नित्यप्रति विश्व में जहाँ-तहाँ पुरातात्विक उत्खनन चलता ही रहता है। कहीं कोई हड्डी का टुकड़ा ऐसे स्थान पर मिल जाए जहाँ उसे नहीं होना चाहिए था अथवा कोई ऐसा पत्थर अथवा शिलाखंड अपने आसपास से मेल न खा रहा हो वहाँ पुरातत्वविद खोदना आरंभ कर दिया करते हैं।

पुरातात्विक उत्खनन से मिले नवीन तथ्यों के आधार पर इतिहास में वांछित संशोधन किए जाते हैं। पर्याप्त अनुसंधान के उपरांत मिले साक्ष्यों के आधार पर पुरानी मान्यताओं को स्वीकृति मिला करती है अथवा उन्हें पूर्णतया अस्वीकार किया जाता है।

यह अवैध अथवा अनुचित होता तो कानून द्वारा प्रतिबंधित होता। जबकि पूरे विश्व के किसी भी देश में ऐसी मनाही नहीं है।

एक और ऐसा लक्षण है जो पुरातत्वविदों को आकर्षित किया करता है कि किसी वस्तु अथवा स्थान का अपने चतुर्दिक वातावरण से भिन्न होना अथवा असामान्य होना।

उदाहरणार्थ श्रीलंका का एक स्थान ऐसा है कि वहां की वनस्पतियां पेड़ फल फूल आदि अपने समीपस्थ फूल फल पेड़ पौधों से पूर्णतया अलग हैं। वे सभी हिमालय के उस क्षेत्र से साम्यता रखते हैं जहाँ से अंजनिसुत महावीर पवनपुत्र रामभक्त हनुमान जी संजीवनी और अन्य औषधीय पौधे लाए थे। वो घटना जनमानस में इस प्रकार अंकित है कि पुरातत्वविदों को वहाँ किसी प्रकार का अनुसंधान अथवा उत्खननकार्य किए बिना ही यह ज्ञात है कि उन वनस्पतियों पेड़ों व फल फूल आदि की वहाँ उपस्थिति असामान्य क्यों है।

होंडुरास के जंगलों के बीच एक गुफा के मुहाने पर बैठे हुए वानर की मूर्ति अथवा इंग्लैंड के स्टोनहेंज अथवा मिस्र के पिरामिडों आदि-आदि की चर्चा यहाँ न भी करें तब भी भारतभूमि अर्थात वर्तमान भारत अफगानिस्थान पाकिस्तान बांग्लादेश म्यांमार आदि में बिखरे पड़े जो अनगिनत साक्ष्य हैं जो अपने आप में असामान्य हैं उन्हें पुरातत्वविद और इतिहासकार कैसे और क्यों नकार रहे हैं?

वीर अभिमन्युपुत्र राजा परीक्षित से लेकर सम्राट पृथ्वीराज चौहान तक लगभग तीन हजार वर्षों की अवधि के बीच अनेकानेक ऐसे राजा-महाराजा हुए हैं जिनके बलवीर्य की कथाएं व ऐश्वर्यशाली जीवन की गौरवगाथा अभी भी चतुर्दिक गूंज रही है। लेकिन, यह घोर आश्चर्य का विषय है कि कुछ अपवादों को छोड़कर माँभारती के उन वीरपुत्रों द्वारा निर्मित विशाल किले भव्य राजनिवास दर्शनीय रंगमहल व अपने इष्टदेवों को समर्पित मंदिर भवन कहीं नहीं दीखते? यह अत्यंत असामान्य है जो इतिहासकारों व पुरातत्वविदों को नहीं दिखा। क्यों?

इससे भी बड़ा आश्चर्यजनक असामान्य यह तथ्य है कि पश्चिम दिशा से आए नितांत असभ्य व क्रूर मानवद्रोही जिनके मूलस्थान भिन्न थे जिनकी भाषा एक नहीं थी जिनकी रुचियां भिन्न-भिन्न थीं और जिनमें पहली समानता यह थी कि वे सभी एक ही मत के अनुयायी थे और दूजे जब वे भारत आए तब वे सभी धड़ाधड़ भवननिर्माण में जुट गए। भवननिर्माण भी ऐसा कि जो देखे दांतों तले अंगुली दबा ले। उन सबमें यह भी एक समानता थी कि वे पहले से निर्मित भवनों को ध्वस्त करते और फिर उसी ध्वस्त किए गए भवन के मलबे से एक नए भवन का निर्माण करते। उन सबमें यह भी समानता थी कि वे अपने नवनिर्मित भवन में जहाँ-तहाँ ध्वस्त किए गए भवनों के पूर्वस्वामी के धार्मिक चिह्न अवश्य ही उकेरा करते। उन सबमें यह समानता इतनी अधिक थी कि दूर उज़्बेकिस्तान में तैमूर लंगड़े के मकबरे के प्रवेशद्वार पर भी किसी हिंदू सम्राट का राजचिह्न सूर्य व शार्दूल अर्थात सिंह अंकित है। जिसे वे आज भी सुरसादुल पुकारा करते हैं।

इतिहासकारों व पुरातत्वविदों को यह असामान्य तथ्य क्यों नहीं दिखा कि विदेशी आक्रांता जिस-जिस देश से आए वहाँ-वहाँ उन्होंने अथवा उनके सहोदरों ने तब कौन-कौनसे निर्माणकार्य किए?

इतिहासकार व पुरातत्वविद यह अति सामान्य बात भी क्यों नहीं देख पाए कि किसी भी कला के कुछ प्रारंभिक विद्वान और ग्रंथ हुआ करते हैं। लेकिन, तथाकथित इस्लामी वास्तुकला के प्रारंभिक विद्वान अथवा ग्रंथ इस धरती पर कहीं भी क्यों नहीं हैं?

सयाने लोगों को यह जानना अति आवश्यक है कि भगवान व भोजन परस्पर विरोधी नहीं हैं। समाज में दुत्कारे गए अथवा दीनहीन लुटेपिटे व्यक्ति को भोजनप्राप्ति अंततः भिक्षा से ही संभव हुआ करती है। इसलिए चोरों डाकुओं लुटेरों द्वारा किए गए अपमान का निवारण करना ही चाहिए।

जिनकी बुद्धि अभी जाग्रत है उन्हें यह अवश्य ही जान लेना चाहिए कि भारतभूमि पर हजारों की संख्या में (यदि अफगानिस्थान पाकिस्तान बांग्लादेश व म्यांमार को भी जोड़ लें तो यह संख्या छह अंकों तक जा पहुंचती है) ऐसे भवन हैं जिनकी पहचान विदेशी आक्रांताओं द्वारा परिवर्तित की गई है। उन सभी, जी हाँ उन सभी प्राचीन धरोहरों के मुक्तिसंघर्ष उतने ही पुराने हैं जितनी पुरानी नरपिशाचों की कलंक-कथा है।

गढ़े मुर्दे नहीं उखाड़ने चाहिएं कहने वाले जानकर भी नहीं जानना चाहते कि इतिहास इससे न कम है न अधिक। उन परमसंतोषी पुरुषों के लिए मूर्ख अथवा धूर्त का संबोधन न्यायोचित नहीं है जो न तो इतिहास से सीखना चाहते हैं और न दीवार पर लिखा पढ़ने की इच्छा रखते हैं। जो भाई और चारा की सर्वव्यापी व्याख्या से ऐसे ही आँख चुराया करते हैं जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर आँखें बंद कर लिया करता है। उन महान पुरुषों के लिए विदेशी भाषा का एक शब्द है सेक्युलर अर्थात महाधूर्त।

प्रस्तुत विषय न तो आस्था का है और न ही भूस्वामित्व का। व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की आस्था विचलित हो सकती है और विदेशी आक्रांता अपने साथ भूमि लेकर नहीं आए थे। अतः यह विषय अदालतों के क्षेत्राधिकार का है ही नहीं। अदालतों में दी गई याचिकाएं सुलझन नहीं अंततः स्थायी उलझन ही देंगी। जैसी विचित्र लांछा अयोध्या में मिली वैसी ही अन्यत्र भी मिलेगी। यह निश्चित जानिए। अयोध्या में एक दुर्दांत परंपरा का स्थापन हुआ। आपके भवन पर बरसों-बरस बलात् अधिकार जमाए बैठे अपराधी को पुरुस्कृत किया गया। इस लेख में जहाँ-जहाँ शब्द अदालत आए उसे अदालत ही पढ़ें न्यायालय मत पढ़ें।

जब कोई देश किसी अन्य देश पर आक्रमण किया करता है तब उसका पहला लक्ष्य होता है उस देश के इतिहास को विकृत अथवा लांछित अथवा अपने हितों के अनुकूल करना।

पराधीनता के उपरांत जब कोई देश स्वाधीन हो तब उसका पहला कार्य होना चाहिए दासता के चिह्नों को मिटाना। क्या हमने ऐसा किया?

स्वाधीनता के पचहत्तर वर्षों के उपरांत भी हमारा इतिहास कलंकित है लांछित है। हमारी शिक्षा प्रणाली दूषित है। आज भी हमारी न्यायप्रणाली स्वदेशी नहीं है। हमारी चिकित्साप्रणाली आयुर्वेद जिसकी विश्व में दिनोंदिन मान्यता बढ़ती ही जा रही है अपने ही देश में न केवल उपेक्षित है अपितु अपमानित भी है।

जब तक यह सुधार नहीं होंगे तब तक हम वास्विकता से कोसों दूर स्वाधीन होने का झूठा दंभ ही कर सकते हैं। बस।

यह अत्यंत विचित्र व दु:खद स्थिति है कि घर के स्वामी को प्रमाणित करने को कहा जाता है कि यह घर उसी का है। स्वाधीन देश की बागडोर थामने वालों को यह करना आवश्यक है कि विदेशी पहचान वाले सभी पथ चतुष्पथ भवन परिसर संस्थान व संस्थाओं की स्वदेशी पहचान तुरंत स्थापित करने का शासनादेश प्रसारित करें। तब शासन द्वारा यह भी आदेश हो कि विदेशी आक्रांताओं को अपना माईबाप बताने वाले अपना अधिकार प्रमाणित करें।

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
91 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
सौगंध से अंजाम तक - दीपक नीलपदम्
सौगंध से अंजाम तक - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
कैसे गाएँ गीत मल्हार
कैसे गाएँ गीत मल्हार
संजय कुमार संजू
काव्य में सहृदयता
काव्य में सहृदयता
कवि रमेशराज
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
विषय तरंग
विषय तरंग
DR ARUN KUMAR SHASTRI
एक नज़्म _ सीने का दर्द मौत के सांचे में ढल गया ,
एक नज़्म _ सीने का दर्द मौत के सांचे में ढल गया ,
Neelofar Khan
नाटक नौटंकी
नाटक नौटंकी
surenderpal vaidya
😊लघु-कथा :--
😊लघु-कथा :--
*प्रणय*
“समर्पित फेसबूक मित्रों को”
“समर्पित फेसबूक मित्रों को”
DrLakshman Jha Parimal
पीत पात सब झड़ गए,
पीत पात सब झड़ गए,
sushil sarna
कोरोना और पानी
कोरोना और पानी
Suryakant Dwivedi
मोहक हरियाली
मोहक हरियाली
Surya Barman
सत्य तत्व है जीवन का खोज
सत्य तत्व है जीवन का खोज
Buddha Prakash
कलम का जादू चल रहा, तो संसार तरक्की कर रहा।
कलम का जादू चल रहा, तो संसार तरक्की कर रहा।
पूर्वार्थ
हमारी प्यारी मां
हमारी प्यारी मां
Shriyansh Gupta
अमीर घरों की गरीब औरतें
अमीर घरों की गरीब औरतें
Surinder blackpen
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
Subhash Singhai
मैं बिल्कुल आम-सा बंदा हूँ...!!
मैं बिल्कुल आम-सा बंदा हूँ...!!
Ravi Betulwala
इंतिज़ार
इंतिज़ार
Shyam Sundar Subramanian
अपूर्णता में पूर्ण है जो ,
अपूर्णता में पूर्ण है जो ,
rubichetanshukla 781
कातिल
कातिल
Dr. Kishan tandon kranti
मत रो मां
मत रो मां
Shekhar Chandra Mitra
इम्तिहान
इम्तिहान
Saraswati Bajpai
खिलेंगे फूल राहों में
खिलेंगे फूल राहों में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तमाशा जिंदगी का हुआ,
तमाशा जिंदगी का हुआ,
शेखर सिंह
"My friend was with me, my inseparable companion,
Chaahat
कृष्ण भक्ति में मैं तो हो गई लीन...
कृष्ण भक्ति में मैं तो हो गई लीन...
Jyoti Khari
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
प्रेम
प्रेम
Dinesh Kumar Gangwar
गरीबी
गरीबी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...