महात्मा बुद्ध
महात्मा बुद्ध
पूर्वज थे इक्ष्वाकु वंशीय,
जन्म लिया छत्रिय शाक्य कुल में,
शाक्य कुल रहता था लुंबिनी में,
लुंबिनी बसा था नेपाल में।
माता इनकी माया देवी ,पिता इनके शुद्धोधन थे,
घर इनके आया एक नन्हा बालक,
सोच रहे थे पूरी हो गई मन की मनोरथ,
नाम रखा गया उसका सिद्धार्थ।
आई विपत्ति माँ का आंचल छूटा,
मौसी गौतमी ने इनको पाला,
बीत रहा था बचपन महलों में,
सीख रहे थे विद्या से युद्ध विद्या तक,
कार्यक्षेत्र में निपुणता से दौड़ रहे थे।
बचपन से ही करुण स्वभाव था,
कोई न प्राणी दुखी देखा जाता,
पर ना जाने क्यों मन नहीं रमता था।
छोटे-छोटे जीवो से लेकर
पशु पक्षी से स्नेह अपार,
उसकी पीड़ा अंतर्मन पर करती घात,
उस पर देते अपना सर्वस्व वार।
बचपन बीता आई जवानी,
सिद्धार्थ की एक बनी रानी,
दंडपाणि शाक्य की कन्या,
कितनी सुंदर कितनी कोमल,
यशोधरा नाम था उनका।
प्रसिद्धि या वैभव की वाहक,
अब तो राजा शुद्धोधन निश्चिंत हुए,
भोग विलास के पूरे प्रबंध किए
तीन ऋतुओ का सुंदर महल बनवाया,
रंजन के संग संग दास दासी को भी रखवाया,
पर सिद्धार्थ का मन कोई बांध ना पाया।
छोड़-छाड़ सब घर परिवार,
ग्रहण किया सन्यास अवतार,
पहला ज्ञान बोध में प्राप्त किया,
सारनाथ में पहला उपदेश दिया,
चार आर्य सत्यो का प्रचार किया।
वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में,
बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ,
बुध पूर्णिमा को जन्म हुआ,
पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्त हुआ,
पूर्णिमा को उनका महानिर्वाण हुआ,
ऐसा बोलो कब किसके साथ हुआ।
तब से अब तक बुद्धपूर्णिमा का त्योहार मनाते हैं,
घर-घर में दीपक जलाते हैं,
धर्म ग्रंथों का पाठ कर आते हैं,
पिंजरो से पक्षी को मुक्त कराते हैं,
गरीबों को भोजन वस्त्र दान कराते हैं,
बुध पूर्णिमा का त्योहार मनाते ।
हरमिंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश)