सत्य की खोज
किसी भी उत्सव के मनाने पीछे मनुष्य
खुद के मन से डर,खौफ़, मन के भार उतारने तक सीमित है.
वह विभिन्न आयोजन करके.
संतुष्ट नजर आता है.
निर्भार भी.
जबकि दुनिया के महान मनोवैज्ञानिक चिकित्सक महात्मा बुद्ध.
अपने योग अनापानसतियोग साधना के महत्व से आपके सूक्ष्म भाव,विचार,सोच पर आधारित कर्म बनते हैं,
लेकिन मनुष्य अपनी तंद्रावस्था/बेहोशी में
उन पर दृष्टि यानि संज्ञान नहीं ले पाता.
नतीजन वह दुख वेदना संवेदना क्रोध चिंता से घिरे रहता है.
और उपाय बाहर खोजता है.
जो की निरर्थक है. संलिप्त रहता है.
मुक्त नहीं हो पाता.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस