**महात्मा गांधी:: मेरा चिंतन !!
युग चाहे नया है, पर जो बीत गया ,वह भी कुछ देकर गया है।
अतीत को पूरी तरह भुलाकर ,यदि हम सिर्फ वर्तमान को ही सब कुछ मान लेंगे, तो भविष्य उतना सुखद नहीं बन पाएगा जितना कि हम चाहते हैं । अतीत हमें कुछ सिखाता है, वर्तमान उस पर चलता है, और भविष्य दोनों के सहयोग से उत्तम बनता है।
उपरोक्त विवरण आज हम इस संदर्भ में दे रहे हैं कि भारतीय वसुधा पर अवतरित हुए महात्मा गांधी जिनका की आज जन्म जयंती दिवस है । गांधीजी सिर्फ एक मनुष्य ही नहीं वह तो परमात्मा द्वारा पृथ्वी पर भेजे गए आत्मा का वह अंश थे जो कहीं ना कहीं अपने अंदर के विचारों का मंथन कर सृष्टि सृजन में अपना अमूल्य योगदान देती है।
आत्मा अमर होती है परंतु उसे कार्य करने के लिए शरीर की आवश्यकता होती है ,और कोई ऐसा शरीर जब उसे मिल जाता है जोकि संपूर्ण सृष्टि को एक नया संदेश दे जाएं, वह शरीर महात्मा गांधी जी का था ।
महात्मा गांधी ने देश दुनिया को क्या नहीं दिया ?
ऐसा कौन सा विषय या क्षेत्र जो उनके सद् विचारों से अछूता रहा मुझे तो दिखाई नहीं पड़ता ।
साबरमती हो ,सेवाग्राम हो ,अंग्रेजों के विरुद्ध किए गए विविध अहिंसात्मक आंदोलन हो ,उपवास हो, स्वावलंबन हो ,नारी उत्थान हो, समाज का ऐसा कोई तबका पहलू नहीं बचा, जिस पर गांधी जी ने अपना चिंतन ,मनन और मार्गदर्शन न किया हो ।
मैं जब कक्षा तीसरी में पढ़ता था ,तब भी मेरे कानों में उनके प्रति गाया हुआ एक गीत गूंजता रहता था जो कुछ इस प्रकार था –
“”अवतार महात्मा गांधी का भारत का भार उतारन को।
श्री राम के संग में लक्ष्मण थे, श्री कृष्ण के संग में बलदाऊ गांधीजी के संग में जनता थी, भारत का भार उतारन को ।।””
यह गीत मैं ग्यारह – बारह वर्ष की उम्र से गुनगुनाता रहता था और गांधीजी के जो सिद्धांत है सत्य अहिंसा शांति उन सिद्धांतों पर चलने के लिए बचपन से ही अपने आप को प्रेरित करता रहता था।
गांधी जी ने हमें बहुत कुछ दिया हम गांधी जी को क्या दे सकते हैं?
दे सकते हैं ,बहुत कुछ दे सकते हैं, देश के उच्च सर्वोच्च पदों पर बैठे प्रत्येक विभाग में ,चाहे वह शासकीय हो अशासकीय, निजी हो प्रत्येक सुधि जन के मन में ,यह भाव जाग जाए कि गांधीजी ने हमें जो आदर्श दिए हैं, उन आदर्शों को हम कथन ,वचन से नहीं मन से अपनाएंगे , तो निश्चित ही हम गांधी जी द्वारा संजोए गए सपने को साकार कर पाएंगे ।
आज के दौर में गांधी जी के विचारों की नितांत आवश्यकता है ।क्योंकि समाज, मुझे लगता है कुछ कुछ ,अपनी दिशा भटकता जा रहा है।
विचार उठता है, परिवर्तन कौन करेगा ?कैसे करेगा? अरे जब हम सब कहते हैं यह देश मेरा । इस देश के लिए मैं यह कर सकता हूं ।मैं वह कर सकता हूं, तो यह परिवर्तन भी आप और हम ही करेंगे ,सिर्फ और सिर्फ आवश्यकता उपदेश भाषण देने की नहीं जी जान से जुट ने की है ।
साहित्यकार, गीतकार, संगीतकार, चित्रकार ,शिक्षा के द्वार,
फिल्मकार, कलाकार, भजन कार ,यदि अपने विषयों में गांधीजी के सिद्धांत को समाज के सामने प्रस्तुत करेंगे तो निश्चित ही यह जो पीढ़ी अपने पीछे आ रही है इनके अंतरण में गांधीजी के सिद्धांत गांधी जी का चिंतन गांधी जी की सोच प्रवेश करेगी और परिवर्तन होगा ।वक्त लगेगा वक्त तो लगता है। किसी भी पुनीत कार्य को करने में वक्त देना पड़ता है। हमें आजादी सहज में नहीं मिली एक दिन का काम नहीं था कि हमने 1 दिन में आजादी प्राप्त कर ली। उसके लिए हमने कितना लंबा संघर्ष किया ठीक उसी प्रकार से यदि हम महात्मा गांधी जी का सच्चा स्मरण करना चाहते हैं ,तो हमें लंबे काल तक के लिए सोच कर के एक बीड़ा उठाना होगा और महात्मा गांधी जी के विचार जन जन में फैलाना होगा, यही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए हमारा सच्चा स्मरण रहेगा ।
**भारत माता की जय– महात्मा गांधी की जय**
“”जय भारत — जय स्वदेश “”
‘आओ बदले पश्चिमी परिवेश — सबसे आगे अपना देश ।’
राजेश व्यास अनुनय