महाकुंभ
आया महाकुंभ रे महाकुंभ
जहाँ लगी पताका गगनचुंभ।
वहां अमृत की बूंदें बरसे
जहाँ देव सभी आने तरसे।।
भूमंडल में डंका बजता है
विश्व मंच जहां सजता है।
देश का अपना स्वाभिमान
भारत का यह कुंभ महान।।
इसमें सृष्टि सारी समा गई
उस रंग में गंगा रंगा गई
कहीं शिव की डमरू बजती है
जहां कृष्ण की झांकी सजती है।।
संस्कृति की पहचान बनी
विश्व गुरु को शान मिली।
नागों की टोली निकल पड़ी
देखे दुनिया ए खड़ी खड़ी ।।
देव करें जिसका बखान
कण कण जहां का है महान।
पाते सब वहां वरदान
जहाँ दानव मानव एक समान।।
प्रशांत शर्मा सरल