*महाकाल के फरसे से मैं, घायल हूॅं पर मरा नहीं (हिंदी गजल)*
महाकाल के फरसे से मैं, घायल हूॅं पर मरा नहीं (हिंदी गजल)
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1)
महाकाल के फरसे से मैं, घायल हूॅं पर मरा नहीं
मैं अमरत्व सनातन सच हूॅं ,अतः मृत्यु से डरा नहीं
2)
अभी मुझे शाश्वत असीम के, आलिंगन को पाना है
अभी न रोको मुझे मौन का, प्याला मेरा भरा नहीं
3)
मैं जैसा भी हूॅं शत-प्रतिशत, सिर्फ तुम्हारी कृति प्रभु हूॅं
मानस में इसलिए कभी भी, रही क्षुब्धता जरा नहीं
4)
मुझ में झूठे अहंकार के, नहीं भरे अवरोधक हैं
किंतु समझ मत लेना इससे, कहीं स्वर्ण मैं खरा नहीं
5)
जीवन का शाश्वत क्रम बचपन, यौवन और बुढ़ापा है
इसमें कुछ कड़वे फल भी हैं, सदा-सदा शर्करा नहीं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997615451