महाकवि विद्यापति आ महारानी लखिमा देवी: प्रेम प्रसंग!
महाकवि विद्यापति आ महारानी लखिमा देवी: प्रेम प्रसंग!
-आचार्य रामानंद मंडल।
महाकवि विद्यापति आ महारानी लखिमा देवी के प्रेम प्रसंग के बारे मे पं गोविंद झा अपन कृति विद्यापतिक आत्मकथा मे चर्चा कैले हतन आ जनकवि बैद्यनाथ मिश्र यात्री अपन कविता लखिमा मे। परंच इ कविता आलोचक -समालोचक से उपेक्षित रहल हय।अइ कविता मे यात्री महाकवि विद्यापति आ महारानी लखिमा देवी के प्रेम के चित्रित कैले हतन। महारानी लखिमा देवी मिथिला के आइनवार वंशज राजा शिवसिह के पत्नी आ महाकवि विद्यापति दरबारी कवि रहलन। राजा शिवसिंह (१४१२ई-१४१६ई) बंगाल -जौनपुर सल्तनत के कर भुगतान न करे के कारण मुगल आक्रंता सामंत इब्राहिम शाह से युद्ध मे मारल गेलन। परंतु हुनकर लाश तक न मिलल।आकि युद्ध से भागके कहीं छूप गेलन। इतिहास मे एकर खुलासा न हय।कहल जाइ हय कि युद्ध के दखैत राजा शिवसिंह के राय से महाकवि विद्यापति सुरक्षा दृष्टि से महारानी लखिमा देवी के साथ राजबनौली (नेपाल) मे चल गेलन।महाराज के गायब होयला के बाद महारानी लखिमा देवी के सानिध्य मे मिथिला के शासन के बागडोर संभालैन।चित्रा कविता संग्रह मे संकलित जनकवि बैद्यनाथ मिश्र यात्री जी के कविता-
लखिमा।
कवि कोकिलक कल -काकलिक रसमंजरी
लखिमा, अंहा छलि हैब अद्भुत सुन्दरी
रुष्ट होइतहुं रुपसी
कहि दैत कियो यदि अहां के विद्यापतिक कवि -प्रेयसी
अहां अपने मौन रहितहुं
कहनिहारक मुदा भ जी जइतैक सत्यानाश!
मानित थिन ईह !
सुनित थिन शिवसिंह तअ घिचवा लितथिन जीह!
दित थिन भकसी झोंझाय तुरंत
क दित थिन कविक आवागमन सहसा बंदि
अहूं अन्त:पुरक भीतर
बारिकैं अन्न-पानि
सुभग सुंदर कविक धरितहुं ध्यान
बूढि बहिकिरनीक द्वारा
कोनो लाथें
आहांकें ओ पठबितथि संदेश –
(संगहि संग जुल्फीक दुइटा केश!)
विपुल वासंती विभवकेर बीच विकसित भेली
कोनो फूलक लेल
लगबथुन ग क्यौं कतेको नागफेनिक बेढ
मुदा तैं भ्रमर हैत निराश?
मधु -महोत्सव ओकर चलतेइ एहिना सदिकाल!
कहू की करथिन क्यौं भूपाल वा नभपाल
अहां ओमहर
हम एम्हर छी
बीचमे व्यवधान
राजमहलक अति विकट प्राकार
सुरक्षित अन्त:पुरक संसार
किंतु हम उठवैत छी
कोखन कतहुं जं
वेदना -विह्वल अपन ई आंखि
अहींटाकें पावि सजनि ठाढि चारू दिस
विस्मय विमोहित कंठसं बहराय जाइछ ईस!
खिन्न भ अलसाई जनु धनि
वारि जनु दिय अन्न किंवा पानि
व्यर्थ अपनहि उपर कौंखन करि जनु अभिरोष
विधि विडम्बित बात ई ,एहिमे ककर की दोष?
नहि कठिन खेपनाइ कहुना चारि वा छौ मास
देवि,सपनहुंमे करि जनु हमर अनविश्वास
अहिंक मधुमय भावनासं पुष्ट भय
प्रतिभा हमर
रचना करत से काव्य
जाहिसं होएताह प्रसन्न नरेश
पुनि हमरो दुहुक मिलनाइ होएत —
सखि सहज संभाव्य !
अहांकें कवि पठवतितथि संवाद
पावि आश्वासन अहां तत्काल अनशन छाड़ि
होइतहुं कथंचित प्रकृतिस्थ!
मनोरंजन हेतु —
हंसक मिथुन अंकित क देखबितए
कोनो नौड़ी,
कोनो नौड़ी आबि गाबिकैं सुनबैत
ओही प्रियकविक निरुपम पदावलि
जाहिंसं होइत अहांकेर
कान दुनू निरतिशय परितृप्त!
चित्त होइत तृप्त!
घृणा होइतए महराजक ऊपर
धिक धिक!
स्वयं अपने
एकसं बढि एक एहन
निरूपम गुणसुंदरी शत -शत किशोरीकें
विविध छल -छंदसं
किंवा प्रतापक प्रवलतासं
पकड़ि कए मंगवाय
अन्न -जल भूषण -वसन श्रृंगार सामग्री ढेर लगाय
सुरक्षित अन्त:पुरक एहि अरगड़ामे
बनौने छथि कैकटा रनिवास
बंदी शिविर सन डेरासभक क्रम -पात
एककें दोसराक संग नहि रहइ जाहिसं मेल
चक्रचालि चलैत छथि ताहि लेल
कखन करथिन ककर आदर वा ककर सम्मान —
घटौथिन ककर कखन दिनमान —
अही चिंतामे सदए लागल रहए हमरासभक जीजान
महराजक चरण सम्वाहन करैमै
सफल होइछ
एक मासक भितर जे दुई राति
पुण्यभागा सुहासिनी अभिशप्त से देवांगना
नहि थिक स्त्रीगणक जाति!
अभागलि कै गोट होएत एहन जकरा
छूबि छाबि कनेक
देने छथिन पुनि अनठाय
मने ओसभ गाछसं तोड़लाक उत्तर
कने दकरल लतामक थुरड़ी जकां हो
एम्हर -ओम्हर पड़ल पांडुर
कोनो अगिमुत्तुक निर्मम निठुरताक प्रतीक!
सुनई छी,राजा थिका नारायणक अवतार
करवाक चाही हुनक जय -जयकार
किंतु भगवान सेहो
क्षीरसागर मध्य
एहिना आड्गवाल रचि विचरैत छथि?
इच्छानुसार करैत छथि अभिसार —-
आइ ककरो
काल्हि ककरो
इंदिराकें बाध्य भ की एहिना
अनका बनाब अ पड़इ छनि ह्रदयेश?
तुमैत एहिना तूर
जाइत होएव अहां बहुतो दूर
भावनाक अनन्त पथ दिस
एकसरि चुपचाप —
तुमैतू अहिना तूर!
विद्यापतिक कविताक हे चिरउत्स ,हे चिर निर्झरी!
लखिमा,अहां छलि हैव अद्भुत सुंदरी!
चित्रा
-जनकवि बैधनाथ मिश्र यात्री
पटना। जनवरी,१९४५.
प्रस्तुत कविता मे जनकवि यात्री महाकवि विद्यापति के प्रेमाकुल -विरहाकुल प्रेमी के रूप मे आ महारानी लखिमा के राजकिला मे बंद प्रेयसी के रूप मे चित्रित कैलन हय। जनकवि यात्री इ कविता महाकवि विद्यापति आ महारानी लखिमा के आत्मिक प्रेम के दर्शैलैन
हय वा कपोल कल्पित प्रेम के इ त शोध के विषय जान पड़ैय।आकि लेखकीय मैथुन हय जेना कि मैथिली साहित्य मे पायल जाइत हय।
@आचार्य रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।