महाकवि ‘भास’
महाकवि भास संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। संस्कृत नाटककारों में महाकवि भास का नाम सम्मान का विषय रहा है। भास के जीवनकाल के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। महाकवि कालिदास जी को गुप्तकालीन कहा जाता है। कालिदास ने अपने नाटक में पहले के लोकप्रिय नाटककारों का चर्चा करते हुए सबसे पहले महाकवि भास और बाद में सोमिल का नाम लिया और उन्हें यशस्वी नाटककार कहा ।
‘बाणभट्ट’, ‘वक्यपतिराज’ और ‘जयदेव’ कवियों ने भी उनकी प्रशंसा की है। आचार्य वामन के “काव्यालंकार सूत्रवृति”, अभिनवगुप्त की “अभिनवभारती”, राजशेखर की “काव्यमीमांसा” से भास के नाटकों का अस्तित्व मिलता है। महाकवि दण्डी द्वारा लिखित “अवंतिसुंदरी कथा” में भी महाकवि भास का नाम आता है। जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि भास गुप्तकाल से पहले के होंगे, लेकिन इससे भी भास के जन्म का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है।
महाकवि भास संस्कृत साहित्य के बहुत बड़े नाटककार थे। परन्तु उनके नाटक अप्राप्त थे। सन् 1907 ई. में म० म० टी. गणपति शास्त्री जी को मलयालम लिपि में लिखित संस्कृत के दस नाटक मिले थे। खोज करने पर तीन नाटक और मिले। इन सभी तेरह नाटकों को सन् 1912 ई. में गणपति शास्त्री जी द्वारा भास के नाम से प्रसारित किए गए।
यह भी कहा जाता है कि भास के उपलब्ध नाटक जिसे कई लोगों ने पूरा करके वर्तमान रूप दिया। चाहे जो भी हो ये सारी नाटक जाली नहीं है। सन् 1912 ई. में त्रिवेंद्रम से ‘गणपति शास्त्री’ जी के द्वारा प्रकाशित कराया गया ये सभी 13 नाटक ‘भासकृत’ माना गया है। वे तेरह नाटक निम्नलिखिल है-
1. स्वप्नवास्वदत्ता – महाकवि भास के द्वारा रचित नाटको में “स्वप्न्वासवदत्तम” सर्वश्रेष्ठ नाटक है। यह नाटक छह अंको का नाटक है। इस नाटक का नामकरण राजा उद्यन के द्वारा वासवदत्ता को सपने में देखते है, उसी पर आधारित है।
2. प्रतिज्ञा यौगंधरायाण- इस नाटक में चार अंक है। यह नाटक लोककथा पर आश्रित है। इसमें कौशाम्बी के राजा वत्सराज उदयन द्वारा उज्जयनी के राजा प्रघोत के पुत्री वासवदत्ता के हरण की कथा है।
3. दरिद्र चारुदत्त- महाकवि भास के नाट्यश्रृंखला में चारुदत्त अंतिम कड़ी है। इसकी कथावस्तु चार अंको में विभाजित है। शूद्रक के प्रसिद्ध प्रकरण “मृच्छकटिक” का आधार इसे ही माना जाता है। इस नाटक में कवि ने दरिद्र चारुदत्त एवं वेश्या वसन्तसेना की प्रणय की कथा का वर्णन है।
4. अविमारक- यह लोककथा पर आधारित छह अंकों का नाटक है। इस नाटक में राजा कुन्तिभोज की पुत्री कुरंगी का राजकुमार अविमारक से प्रणय एवं विवाह का वर्णन है।
5. प्रतिमानाटक- महाकवि भास का यह प्रतिमानाटक सात अंको का है। इस नाटक में महाकवि भास ने राम वनगमन से लेकर रावणवध और राम राज्याभिषेक तक के घटनाओं का वर्णन है।
6. अभिषेक नाटक- अभिषेक नाटक भी राम कथा पर आश्रित है। यह नाटक छह अंको का है। इसमें रामायण के ‘किष्किन्धाकाण्ड’ से लेकर युद्ध की समाप्ति तक के कथा का वर्णन है। ‘रामराज्याभिषेक’ के आधार पर ही इस नाटक का नामकारण किया गया है।
7. बालचरित- इस नाटक में पांच अंक है। इसमें श्री कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन है। इसमें श्री कृष्ण के जन्म से लेकर कंस वध तक का वर्णन है।
8. पंचरात्र- यह तीन अंकों का समवकार है। इसकी कथा महाभारत के ‘विराटपर्व’ पर आधारित है। इस कथा का नामकरण पांच रात्रियों में पाण्डव को ढूंढने से है। द्रोणाचार्य के प्रयास से पाण्डव मिल जाते है तथा दुर्योधन के द्वारा उन्हें आधा राज्य दे दिया जाता है।
9. मध्यम व्यायोग- ‘व्यायोग’ रूपक का एक भेद होता है। यह एक अंक का व्यायोग है। इसकी कथावस्तु का आधार महाभारत है। इस नाटक में पाण्डवों के वनवास के समय में भीम के द्वारा घटोत्कच के पंजे से एक ब्राह्मण बालक की मुक्ति की कथा है। ‘मध्यम’ शब्द मध्यम पाण्डव भीम और ब्राह्मण के मध्यम पुत्र दोनों के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसलिए इस नाटक का नाम “मध्यम व्यायोग” है।
10. दूतवाक्य- यह एक एकांकी नाटक है। इस नाटक में श्री कृष्ण के दूत रूप का वर्णन हुआ है। इस नाटक में श्री कृष दुर्योधन के पास संधि का प्रस्ताव लेकर जाते है किन्तु वहाँ उनका अपमान होता है और वे असफल लौट आते है।
11. दूत घटोत्कच- यह भी एक एकांकी नाटक है। इस नाटक में अभिमन्यु के मृत्यु के पश्चात् श्री कृष्ण घटोत्कच को दूत के रूप में धृतराष्ट्र के पास भेजते है। दुर्योधन कोधित होकर घटोत्कच का तिरस्कार करता है। घटोत्कच दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारता है। घटोत्कच के दूत बनके जाने के कारण इसका नाम दूत घटोत्कच रखा गया।
12. कर्णभार- यह नाटक भी एक अंक का है। इसकी कथावस्तु भी महाभारत से सम्बंधित है। इसमें द्रोणाचार्य के स्वर्गवास के पश्चात् कर्ण को सेनापति बना दिया जाता है। महाभारत के युद्ध का भर कर्ण पर आ जाता है। इसलिए इसका नाम “कर्णभार” पड़ा।
13. उरुभंग – उरुभंग भी महाभारत के कथा पर आधारित एक एकांकी है। इसमें द्रोपती के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए भीम और दुर्योधन के गदायुद्ध का वर्णन है।
जय हिंद