Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Mar 2021 · 7 min read

महाकवि आरसी प्रसाद सिंह जी की संजीवनी

महाकवि आरसी प्रसाद सिंह जी
( Great poet Arsi Prasad Singh, )
विषय :- संजीवनी
कच और देवयानी की प्रेम कथा
वृहस्पति :- कच का पिता , देवताओं के गुरु
शुक्राचार्य :- देवयानी की पिता , राक्षसों के गुरु , कच का गुरु

जन्म- 19 अगस्त, 1911 ई., बिहार
मृत्यु- 15 नवंबर, 1996

आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1911 को बिहार के मिथिलांचल के समस्तीपुर जिला में रोसड़ा रेलवे स्टेशन से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बागमती नदी के किनारे एक गाँव ‘एरौत’ (पूर्व नाम ऐरावत) में हुआ था। यह गाँव महाकवि आरसी प्रसाद सिंह की जन्मभूमि और कर्मभूमि है, इसीलिए इस गाँव को “आरसी नगर एरौत” भी कहा जाता है।।
अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद आरसी प्रसाद सिंह की साहित्य लेखन की ओर रुचि बढ़ी। उनकी साहित्यिक रुचि एवं लेखन शैली से प्रभावित होकर कवि रामवृक्ष बेनीपुरी ने उन्हें “युवक” समाचार पत्र में अवसर प्रदान किया। बेनीपुरी जी उन दिनों ‘युवक’ के संपादक थे। ‘युवक’ में प्रकाशित रचनाओं में उन्होंने ऐसे क्रांतिकारी शब्दों का प्रयोग किया था कि तत्कालीन अंग्रेज़ हुकूमत ने उनके ख़िला़फ गिरफ़्तारी का वारंट जारी कर दिया था।
भारत के प्रसिद्ध कवि, कथाकार और एकांकीकार थे। छायावाद के तृतीय उत्थान के कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाले और ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह को जीवन और यौवन का कवि कहा जाता है। बिहार के श्रेष्ठ कवियों में इन्हें गिना जाता है। आरसी प्रसाद सिंह हिन्दी और मैथिली भाषा के ऐसे प्रमुख हस्ताक्षर थे, जिनकी रचनाओं को पढ़ना हमेशा ही दिलचस्प रहा है। इस महाकवि ने हिन्दी साहित्य में बालकाव्य, कथाकाव्य, महाकाव्य, गीतकाव्य, रेडियो रूपक एवं कहानियों समेत कई रचनाएँ हिन्दी एवं मैथिली साहित्य को समर्पित की थीं। आरसी बाबू साहित्य से जुड़े रहने के अतिरिक्त राजनीतिक रूप से भी जागरूक एवं निर्भीक रहे। उन्होंने अपनी लेखनी से नेताओं पर कटाक्ष करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। 15 नवंबर, 1996 में इनकी मृत्यु हो गई ।

प्रश्न :- संजीवनी (संजीविनी) की कथावस्तु का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।
संजीविनी’ खण्ड-काव्य की संक्षिप्त कथा प्रस्तुत कीजिए ।

संजीवनी (संजीविनी) एक खण्ड काव्य है । इसकी कथा नौ सर्गो में है । राष्ट्रीय भावना से भरा हुआ कविवर आरसी ने कच और देवयानी की पौराणिक कथा का आधार बनाकर आधुनिक भारत की समस्याओं का स्पर्श किया है । आज का हमारा अधिकांश युवकों प्यार के लिए सब कुछ कर सकता , पर प्यार को त्याग नहीं सकता ।

देवासुर (देवता और राक्षस) संग्राम की कथा बहुत प्राचीन है । देवता और दानवों में हमेशा संघर्ष होता रहा है । देवताओं ने बार – बार दानवों (राक्षसों) को हराया , पर दानव हारकर भी पुनः दुगना शक्ति से युद्ध में लग जाते । कारण यह था कि राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य को संजीविनी विद्या का ज्ञान था और उसी शक्ति से वे राक्षसों को पुनः जीवित कर देते थे । देवराज इन्द्र चिन्तित थे। देवताओं के समक्ष (सामने) एक गम्भीर समस्या उपस्थित थीं । सभा में सभी देवता मौन थे । उनकेे गुरु वृहस्पति ने उनकी समस्या का समाधान किया कि यदि कोई देव-पुत्र राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य को प्रसन्न कर ले और उनसे संजीविनी विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लें तभी कुशल (अच्छा) है । पर राक्षसों के राज्य में जाने के लिए कोई तैयार नहीं था । तभी वृहस्पति का तेजवान पुत्र कच खड़ा हुआ – सारी कठिनाइयों और आपत्तियों को झेल कर शुक्राचार्य से विद्या प्राप्त करने के लिए मैं जाऊंगा । कच को प्रस्तुत देखकर इन्द्र चौंक पड़े और बोले ‘सौम्य ! यहां यम , कुबेर आदि दिकपाल जैसे वीर शिरोमणि खड़े हैं , फिर भला तुम क्यों उस आग की लपटों में जाओगे ? उसने बड़े उत्साह से कहा कि ‘पूज्य पिता का आशीर्वाद हो , सुर – संसद की कृपा हो तो मैं गुरु-सेवा में आत्मसमर्पण कर दूंगा , संजीविनी सीख कर आऊंगा और औरों को सिखलाऊंगा । वृहस्पति बोले – जाओ तात् ! (बेटा) गुरु- प्रसाद से ही विद्या प्राप्त होती है । इस प्रकार देवलोक से गुरु-जनों का आशीष ग्रहण कर कच ने प्रस्थान किया ।
नगर के कोलाहल से दूर शान्त तमसातट पर तपोवन के एक एकान्त आश्रम में शुक्राचार्य रहते थे । जब कच वहां पहुंचा तो उस समय उनकी पुत्री देवयानी से उसकी भेंट हुई । कच ने गुरु से भेंट करने की प्रार्थना की तथा अपना प्रयोजन भी बतलाया । देवयानी के हृदय में उसके प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ। उसनेे समुचित सत्कार किया तथा कच को आश्वासन दिया कि उसका मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होगा । कच गुरु शुक्राचार्य के चरणों पर विनीत हुआ तथा उनका शिष्य बनने की चाह प्रकट की । कच की भक्ति से प्रभावित होकर शुक्राचार्य संतुष्ट हुए । उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और अपना शिष्य बना लिया। दस – शत वर्षों तक ब्रह्राचर्य-व्रत का संकल्प लेकर कच उनका शिष्य बन गया और एक योग्य , कुशल शिष्य की तरह गुरु के चरणों का आशीर्वाद तथा निश्छल हृदय देवयानी का स्नेह पाकर अपनी साधना में जुट गया । वह कठोर श्रम करता – गुरु की आज्ञा और साधना की धूप से न तो वह विचलित होता और न देवयानी के प्रेम की चाँदनी से चंचल ही होता । साधना के पथ पर अविचलित , अविश्रान्त भाव से वह गतिशील था ।

इधर कच के प्रति राक्षसों में कौतूहल जगा । गुरु शुक्राचार्य के भय से वे प्रत्यक्षत: कुछ कर नहीं पाते थे ‌। उनके हृदय में घृणा और विद्वेष का दावानल दहक रहा था । एक दिन एकान्त पाकर दनुज के बालकों ने स्नेह का छल बिछाकर कच से सारी बातें जान ली । निष्कपट कच कुछ छिपा नहीं पाया , और तब दुष्ट-दानव बालकों ने उसे मार डाला । संध्या हो जाने पर भी जब कच आश्रम नहीं लौटा तब देवयानी का हृदय शंका और त्रास से भर उठा ‌ उसके हृदय में कच के प्रति निश्छल प्यार पनप चुका था । वह विफल होकर अपने पिता के पास पहुंची और अत्यन्त आतुर भाव से अपने भय का निवेदन किया ‌ । शुक्राचार्य अपनी पुत्री को अत्यधिक प्यार करते थे ‌। उन्होंने दिव्य मंत्रोच्चार किया तथा कच का आह्वान किया । दूर दूर तक उनका स्वर प्रतिध्वनित हो उठा और उत्तर के रूप में सुदूर देश में कच की आवाज़ सुनाई पड़ी। कच पुनरुज्जीवित होकर संदेह उपस्थित हो गया । देवयानी के अश्रु पुरित नैन खुशी से नाच उठे । कच से पूरी कहानी सुनकर शुक्राचार्य ने उसे सावधानी से रहने की सीख दी । देवयानी ने संकल्प किया कि
वह भविष्य में कच को अकेले वन में नहीं जाने देगी । साधना का रथ फिर बढ़ चला । पर राक्षसों के बीच खलबली मच गई थी । उनका द्वेष बढ़ता गया और वे किसी उपयुक्त अवसर की खोज में थे । कच पूजा हेतु जब मधुबन से फूल चुन रहा था राक्षसों ने उसे पुनः मार डाला और अस्थि – मांस को पीस कर जल की धारा में विसर्जित कर दिया । एक बार फिर देवयानी के आकुल अंतर को , स्नेह – शिथिल हृदय को शांति तथा उल्लास देने हेतु गुरु शुक्राचार्य ने कच को जीवित कर दिया ।

एक दिन राजभवन के किसी उत्सव में गुरु और देवयानी दोनों गये हुए थे । कच आश्रम में अकेले था । राक्षसों ने छल का सहारा लिया । कच को लगा मानो आश्रम की गाय बाहर भय से चिल्ला रही हो । वह अस्त्र लेकर गौ रक्षा के लिए बाहर निकला । राक्षसों को अवसर मिला । उन्होंने उसे मार डाला तथा अस्थि – मांस को जलाकर गुरु के पेय में मिला दिया । बिना किसी आशंका की कल्पना किए हुए गुरु उसे पी गये ।

रात में जब शुक्राचार्य और देवयानी आश्रम आये तो कच का कहीं पता नहीं था । एक अज्ञात भय से देवयानी सिहर उठी । मन की समस्त पीड़ाओं को वाणी देकर , वह पिता के समक्ष (सामने) गिड़गिड़ाने लगी । उसकी कातर वेदना-युक्त आग्रह ने एक बार पुनः शुक्राचार्य को कच को जीवित करने के लिए विवश कर दिया । उन्होंने फिर मंत्रोच्चारण किया। पर गुरु के उदर में स्थित कच बाहर निकलने के विषय में धर्म संकट में पड़ा हुआ था। ( लोक लाज) गुरु का पेट चीर कर निकलने का अर्थ होता गुरु की मृत्यु और कच को यह सोचना भी अभीष्ट नहीं था। अन्त में देवयानी का अत्याधिक अग्रह देखकर गुरु ने कच को वहीं ( पेट के अंदर ही ) संजीविनी विद्या का ज्ञान दिया । कच बाहर निकला और फिर उसी मंत्र के सहारे गुरू को भी जीवित कर दिया । साधना की सिद्धि के अवसर पर कच ने गुरु के चरणों पर सिर रख दिया । स्नेह – शिथिल गुरु ने उसे अपने पुत्र की समकक्षता दी तथा उसे जी भर आशीर्वाद दिया ।

उद्देश्य – पूर्ति के पश्चात जब एक बार कच ने देवलोक जाने का निश्चय किया तो देवयानी ( गुरु की पुत्री ) ने उस पर प्रेम प्रकट करके उससे रुक जाने की प्रार्थना की । कच ने अपने कर्त्तव्य पालन की बात कहकर देवयानी की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया , साथ ही यह बात भी स्पष्ट कर दी कि भगिनी के रूप में गुरु- सुता ( गुरु की पुत्री ) से वह विवाह की बात भी नहीं सोच सकता । अन्त में निराश होकर देवयानी ने कच को शाप दे दिया कि संजीविनी ( संजीवनी) विद्या कच के काम नहीं आएगी । कच ने भी देवयानी के क्रोध को अनुचित बताकर उसे किसी क्षत्रिय की पत्नी बनने का शाप दे दिया । तदोपरान्त कच ने देवलोक जाकर संजीवनी विद्या का प्रसार कर देवताओं में उत्साह भर दिया और देवताओं ने धर्म- युद्ध में तत्पर होकर दानवों को परास्त कर दिया , स्वर्ग लोक में सुख और शांति छा गई । ‘संजीविनी का यही कथानक है ।

#महाकवि #आरसी #प्रसाद #सिंह
( #Great #poet #Arsi #Prasad #Singh, )
विषय :- #संजीवनी
#कच और #देवयानी
#शुक्राचार्य :- #देवयानी की #पिता , #राक्षसों के #गुरु , कच का गुरु
#वृहस्पति :- कच का पिता , #देवताओं का गुरु

28/02/2021 , रविवार , कविता :- 19(21)

रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা

मोबाइल / व्हाट्सएप , Mobile & WhatsApp no :- 6290640716

Service :- 24×7
सेवा :- 24×7
——————————————————

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 9803 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दुनिया में तरह -तरह के लोग मिलेंगे,
दुनिया में तरह -तरह के लोग मिलेंगे,
Anamika Tiwari 'annpurna '
कैसी ये पीर है
कैसी ये पीर है
Dr fauzia Naseem shad
ये अमावस की रात तो गुजर जाएगी
ये अमावस की रात तो गुजर जाएगी
VINOD CHAUHAN
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
Rj Anand Prajapati
साथ बैठो कुछ पल को
साथ बैठो कुछ पल को
Chitra Bisht
याचना
याचना
Suryakant Dwivedi
4588.*पूर्णिका*
4588.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
প্রফুল্ল হৃদয় এবং হাস্যোজ্জ্বল চেহারা
প্রফুল্ল হৃদয় এবং হাস্যোজ্জ্বল চেহারা
Sakhawat Jisan
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
तुझको पाकर ,पाना चाहती हुं मैं
तुझको पाकर ,पाना चाहती हुं मैं
Ankita Patel
#हिंदी-
#हिंदी-
*प्रणय*
यही तो जिंदगी का सच है
यही तो जिंदगी का सच है
gurudeenverma198
बिना अश्क रोने की होती नहीं खबर
बिना अश्क रोने की होती नहीं खबर
sushil sarna
कलम के हम सिपाही हैं, कलम बिकने नहीं देंगे,
कलम के हम सिपाही हैं, कलम बिकने नहीं देंगे,
दीपक श्रीवास्तव
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी
Dr. Vaishali Verma
जिसने दिया था दिल भी वो उसके कभी न थे।
जिसने दिया था दिल भी वो उसके कभी न थे।
सत्य कुमार प्रेमी
"फर्क"
Dr. Kishan tandon kranti
कोलकाता की मौमीता का बलात्कार और उसकी निर्मम हत्या....ये तत्
कोलकाता की मौमीता का बलात्कार और उसकी निर्मम हत्या....ये तत्
ruby kumari
तू है तो फिर क्या कमी है
तू है तो फिर क्या कमी है
Surinder blackpen
बरखा रानी तू कयामत है ...
बरखा रानी तू कयामत है ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
ज़ब जीवन मे सब कुछ सही चल रहा हो ना
ज़ब जीवन मे सब कुछ सही चल रहा हो ना
शेखर सिंह
बहुत दिनों के बाद मिले हैं हम दोनों
बहुत दिनों के बाद मिले हैं हम दोनों
Shweta Soni
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ज़िम्मेदारियों ने तन्हा कर दिया अपनों से,
ज़िम्मेदारियों ने तन्हा कर दिया अपनों से,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अनकहा
अनकहा
Madhu Shah
बार-बार लिखा,
बार-बार लिखा,
Priya princess panwar
अब  छोड़  जगत   आडंबर  को।
अब छोड़ जगत आडंबर को।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*यह तो बात सही है सबको, जग से जाना होता है (हिंदी गजल)*
*यह तो बात सही है सबको, जग से जाना होता है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
वेद पुराण और ग्रंथ हमारे संस्कृत में है हर कोई पढ़ा नही पाएं
वेद पुराण और ग्रंथ हमारे संस्कृत में है हर कोई पढ़ा नही पाएं
पूर्वार्थ
मिला जो इक दफा वो हर दफा मिलता नहीं यारों - डी के निवातिया
मिला जो इक दफा वो हर दफा मिलता नहीं यारों - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
Loading...