महाकवि,जगत् मसीहा मार्ग-दर्शक*बाबा साहब*
आदर्श-युक्ति
जिम्मेदारियों में नहीं है बोझ इतना,
जितना रिश्तों ने …उलझा दिया,
सीखना था बस स्वावलंबी बनना,
इसमें भी जाति-वर्ण का महाजाल बिछा दिया,
दलदल है ये समाज में,सभ्यता है ये,
संस्कृति है ये,…….परम्परा है ये,
रीति-रिवाज है ये,आवश्यक विषय है ये,
पढ़ना और निभाना जरूरी है….इसे,
इंसानियत को कुएं का मेंढ़क बना दिया,
ये तो बाबा साहब थे,जिन्होंने विरोध दर्ज करवा दिया, मानवता क्या है सिखा दिया,
मानव-मानव में जो भेद था ..मिटा दिया,
चालाकी देखो….
उन्हें सिर्फ “दलितों का मसीहा” का नाम दिया,
जिन्होंने जन-जन में भेद मिटा हर वर्ग का ख्याल किया,
आज वे सिर्फ आरक्षण के प्रणेता के नाम से जाने जाते है,
शत् शत् नमन उनको
जिन्होने स्वर्ण और शूद्र के बीच की खाई को मिटा दिया,
धर्म-परिवर्तन के गुर् को सिखा दिया,
उनके एक महासूत्र:-
शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो,
सफलता के राज को उजागर कर दिया,
जय भीम?जय भारत,