महसर में होना तुम सबका हिसाब है।
इंसानी फितरत हो चुकी बहुत खराब है।
कर दो मदद उस गरीब की यह शवाब है।।1।।
कहा था आग का दारिया ईश्क जनाब है।
मुहब्बत का मुकम्मल होना एक ख्वाब है।।2।।
सूरत ओ सीरत दोनो में वह तो नायाब है।
बयांन को उसकी तारीफ ना अल्फाज़ है।।3।।
अच्छा किया तुमने वो पिंजड़ा खोलकर।
दुआये देगा परिंदा जो हो गया आज़ाद है।।4।।
ये आतंक है ना कोई इस्लामी जिहाद है।
महसर में होगा तुम्हारा सबका हिसाब है।।5।।
जाओ जी लो तुम अपनी ये जिदंगी को।
तुमसे अब ना कोई मेरा सवाल जवाब है।।6।।
गर बच जाती है जान किसी की झूठ से।
तो बोल देना ऐसा झूठ होता ना गुनाह है।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ