महल के ख्याव
भोर होने के साथ वह अपने राजमिस्त्री माँ -बाप के साथ चल देती थी । इस दौरान उसको दम घोटने वाली मलीन बस्ती की बू से छुटकारा मिल जाता था , गंदे कूड़ाघर , जल संग्रह एवं मृत सड़कों की सन्दों में जमी कीचड़ से आने वाली बू नीमा के परिवार का अंग थी । उनकी झुग्गी गरीबी एवं तंगहाली के कारण बरसात के पानी से जर्र जर्र हुए तालाब के पास थी । सुजुकी , जो नीमा नीरू की बेटी थी , इस माहौल के विपरीत बिछोने पर सोकर ख्याव महलों देखती थी । अक्सर अपने बाप से पूछती , ” पा ! ये बड़े लोग कैसे बनते है ” ? बाप कहता ,”छोरी ! तू उल्टे -सीधे प्रश्न काहे करती है शाम की रोटी का इन्तजाम नहीं , ख्याव महलों के देखती है ” ।