महबूब को अपने कभी आहत नहीं करते
जो करते मुहब्बत वो शिकायत नहीं करते
महबूब को अपने कभी आहत नहीं करते
जो दौर नया फोन का चैटिंग का चला है
अब प्रेमिका प्रेमी भी लिखा खत नहीं करते
ये दिल तो रहे ज़िन्दगी भर बच्चे जैसा
हम ही बड़े होकर के शरारत नहीं करते
दिल इतना हमारा यूँ बीमार न होता
जो सूख के ये अश्क बगावत नहीं करते
क्यों काटते रहते हो दलीलों को हमारी
यूँ और किसी से तो वकालत नहीं करते
हम पाएंगें ये कैसे जमाने की नज़र में
जब खुद की ही हम ‘अर्चना’ इज्ज़त नहीं करते
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद