महबूबा अब हमपे सितम मत करना
हो जाए ग़र कोई ख़ता ये दास्तां ख़तम मत करना
जालिमा मेरी महबूबा अब हमपे सितम मत करना
उछाल देना चेहरें पे हमारे चाहें अंगारें ,हम सह लेंगे
हमें ख़ुद से अलैयदा मत करना फ़िर ऐसा ज़ुलम मत करना
हमनें तेरी ही मुहब्बत के ख़ातिर ख़ुद को काँच कर लिया
थोड़ा सम्भालकर रखना हमें ,चकनाचूर सनम मत करना
सौ दफ़ा सुनाना खरी खोटी किसी बात पे, हम सुन लेंगे
हमनें ख़ुद को तेरे हवाले किया,कोई दिल में भरम मत करना
बड़ी कसक सी उठ्ठा करती हैं जब तुझसे बिछड़ते हैं
हम खामखां लड़ते हैं ,ऐ दिल अब ऐसा करम मत करना
~अजय “अग्यार