महफिल में उदासी छाई है
महफिल में उदासी छाई है
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महफिल में उदासी छाई है,
जुदाई की घड़ियाँ आईं हैं।
भीगी भीगी आँखों में नमी,
यार की आँखें भर आई है।
चेहरे सभी के हैं उड़े-उड़े,
चेहरों पर मायूसी छाई है।
अंजुमन में बहारें रहती थी,
मजलिस में तन्हाई छाई है।
गुलशन में गुल मुरझाए हैं,
क्यारी फूलों की मुरझाई है।
जिगरी यार दिल के टुकड़े,
टुकड़ो की आज विदाई है।
गम के बादल नभ में छये,
काली घन घोर घटा छाई है।
मनसीरत भी बहुत उदास है,
आँसुओं की झड़ी लगाई है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)