महफ़िल में राज़दारों की बात करता है
महफ़िल में राज़दारों की बात करता है
प्यार में इश्तहारों की बात करता है
जो प्यालियों के टूटने से टूट गया
कैसे वो सितारों की बात करता है
सर्द हवाओं की गर्मी नहीं देखी शायद
मौसम के इशारों की बात करता है
ख़ुश्बूएं नाकाम हुई जाती हैं या रब
फूलों में खारों की बात करता है
बेचता फिरता है खुद ज़मीर अपना
फिर भी ख़रीदारों की बात करता है
हुई हैं यारियाँ कश्ती से तूफ़ान की
अब तो कौन किनारों की बात करता है
हवाएँ उलफत की रोक के बैठा है
वही दिल की दीवारों की बात करता है
काश ! के झाँक लेता अपनी भी गिरेबान
हँस – हँस के हज़ारों की बात करता है
जब से देखी हैं सरु’ की अदाएँ उसने
नज़रों और नज़ारों की बात करता है