महतारी के कोरा (छत्तीसगढ़ी कविता)
महतारी के कोरा
सरग बरोबर लागे मोला
महतारी के कोरा,
छप्पनभोग बरोबर लागे
तोर बासी वाले कटोरा,
जूठा कंउरा तोर ओ दाई
अमृत ले हे भारी ओ,
आशिष जइसन लागे मोला
मया भरे तोर गारी ओ,
सउख का मोर पूरा करे बर
लुटा दिए अपन खजाना,
तोर बिना ओ नइहे दाई
मोर जिनगी के ठिकाना,
मोर पांव म गड़थे कांटा
पीरा जनाथे तोला,
कतको दुख ल तै सहे
फेर नई कहे ओ मोला,
गुरतुर-गुरतुर लागे मोला
तोर मया के लोरी,
जग में सुघर हावे महतारी के
मया पिरित के डोरी,
तोर दूध के कर्ज़ा ल दाई
मैं ह कइसे छुटाहुँ ओ,
तोर कोरा के सुख ल दाई
कइसे मैं ह भुलाहुँ ओ,
आघु जनम म रइही दाई
मोला तोर अगोरा,
सरग घलो ले सुग्घर हे
मोर महतारी के कोरा ।।
– विनय कुमार करुणे