महताब जमीं पर
उनकी दस्तक हुई तन्हाई में तो ऐसा लगा।
जैसे की तप्ती धूप में,हवा का झोंका आ गया।
तेरी शोहरत तेरा जलवा,बहारों में है घर तेरा।
खिजां वहां आ नही सकती,जहां पर तू क़दम रख दे।
जब तलक शिरकत है तेरी,तमाम रौनक यहां शामो शहर।
उठ के जब तुम चल दिये,सुनी हुई महफ़िल तब से।
जमाल ए नूर है ये चेहरे का उनके देखो तो जरा,
या कोई महताब ताविन्दा जमीं पर आया है ।
महज ख्याल से तुम छा गए जेहन पर मेरे।
अगर दीदार हुआ होश गवां बैठूँगा।
तू खलील तू ही करीम तू ही तो रहबर है।
तेरे दामन के शिवा और कहाँ टिकाना मेरा।
सतीश सृजन, लखनऊ.