महज सुकरात का डर है
अन्धेरे को उजाले का ,
सुबह को रात का डर है
जिन्होंने मूँद लीं आँखे
उन्हे किस बात का डर है
बहुत कमजोर है आधार
रिश्तोँ की इमारत का
किसी दम ये न ढह जायें
इसे
अन्धेरे को उजाले का ,
सुबह को रात का डर है
जिन्होंने मूँद लीं आँखे
उन्हे किस बात का डर है
बहुत कमजोर है आधार
रिश्तोँ की इमारत का
किसी दम ये न ढह जायें
इसे