महज़ सपना
बहुत दिन हुए नहीं बात की किसी अपने से/बहुत दिन हुए मुलाक़ात नहीं हुई
हृदय में उमड़ते सपने से/बहुत दिन हुए नहीं पी चाय
किसी अपने के घर बैठ/बहुत दिन हुए
नहीं दिखाई किसी अपने ने
बेमतलब की ऐंठ/
बहुत दिन हुए
नहीं गाया दिल का गीत/
बहुत दिन हुए
नहीं मिली दिल-सी प्रीत/
बहुत दिन हुए
घूमा नहीं
किसी अपने के संग
नहीं बिखेरे आपस में
मस्ती के रंग/सच पूछो तो
अब पराया
हर अपना हो गया
या यूँ कहूँ
अपनेपन का भाव
महज़ सपना हो गया।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)