महज़ ये इश्क़ हैं क्या..???
महज़, ये इश्क़ है क्या…??
थोड़ा मुश्किल है समझना !
सुना है मैंने
इश्क़ अधूरा होता हैं
शायद, सही ही है
लेकिन हृदय की आंतरिकता
कहा समझ पाता हैं
जिसने प्रेम रूपी दर्पण
सजाए रखा है
और पूछता है
महज, ये इश्क़ है क्या..??
तड़प है इसमें एक नाकामयाब सा
कहते है लोग
लेकिन सुकून भी तो है
ज़ख्म है बिछड़ने का गर,
मिलन की खुशी भी तो हैं
फिर भी टटोलता हुआ मन मेरा
पूछता है
महज, ये इश्क़ हैं क्या..??
चलो मान लेते है
हासिल नहीं होता कुछ भी
इश्क़ की रांहो में
मगर कुछ ना मिलकर भी
सब कुछ मिल जाएं
यही तो इश्क हैं
फिर क्यों बुझतें हुए अरमान मेरे
पूछते है
महज़, ये इश्क़ है क्या..??