महकी महकी सी लगती है
महकी महकी सी लगती है
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हौले हौले समय का पहिया
साल एक आगे हमें ले आया है
अपना मिलना अब भी मुझको
कल ही की बात तो लगती है।
सोचा ना था कभी अचानक
तुम मिल जाओगी मुझको
जीवन में मेरे आना तेरा
ईश्वर की ही इनायत लगती है।
प्रेम की भाषा क्या होती है
ये मैंने जाना है तुमसे
इन्तेज़ार की घड़ी भी जिसमें
मीठी मीठी लगती है।
तेरे मिलने से पहले जानम
प्रेम डगर से अनजाना था
साथ तेरा जो मिला है मुझको
ये डगर भी आसां लगती है ।
बदरंग से जीवन में आकर
रंग प्रेम के तुमने भर डाले
अब मेरी ये रंगीन दुनिया भी
महकी महकी सी लगती है ।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्यप्रदेश)