# महकता बदन #
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
# महकता बदन #
गुलाब देकर वो चली गई
सालों पहले
और मैं सालों तक गुलाब सा
महकता रहा
एक अजीब सी बायोपिक
मेरे जेहन में घंटियाँ
बजाती रही
और मैं गुलाबी आनन्द की
ओस में ता उम्र
भीग भीग मगन होता रहा
जिंदगी का फलसफा
समझने की उम्र जब आई
वक्त रेत की मानिंद
फिसलता गया
मिरे होश गुम सुम
ना कदर जवानी की
बदलते मौसम सा
इजलास भी बदलता गया
तारीख़ के बदलने के साथ साथ
बदन मेरा उस गुलाब की
खुशबु भी खोता गया
गुलाब देकर वो चली गई
सालों पहले
और मैं सालों तक गुलाब सा
महकता रहा
एक अजीब सी बायोपिक
मेरे जेहन में घंटियाँ
बजाती रही
और मैं गुलाबी आनन्द की
ओस में ता उम्र
भीग भीग मगन होता रहा