महकता इत्र
जब कष्ट के चुभने लगें शूल,
कांटों में बदल जाएं फूल ।
मन भटके चहुं ओर ,
जैसे बिन पंख हो मोर ।
उठे न कोई कदम ,
जीवन लगने लगे बेदम।
तब महकता है कोई जैसे हो इत्र,
वह होता है सच्चा मित्र ।
लगाकर गले कहता है सुन,
जीवन नहीं है कोई नीरस धुन ।
उठ , चल मेरे साथ बनेगी हर बात,
गुजरेगी अंधेरी रात ।
आएगा वो सवेरा ,
जब भाग्य उदय होगा तेरा।
मैं उठ जाता हूँ ,
मन में विचार लाता हूँ ,
हे मित्र ! सुनो –
तुमने बढ़ाया है मेरा हौसला ,
जैसे बेघर कोयल को मिला हो घोंसला ।
मेरे अंतर्मन मन में रहे तुम्हारा चित्र ,
सदैव मेरी प्रेरणा बने रहना मेरे मित्र ।