“महंगा तजुर्बा सस्ता ना मिलै”
शीर्षक: “महंगा तजुर्बा सस्ता ना मिलै”
(मंगलवार, 29 नवम्बर 2022)
महंगा तजुर्बा, सस्ता ना मिलै,
यू चक्रवर्धी ब्याज ज्यूँ चलै।
खून पसीना गेल हाड़ फोड़े,
या दाल कर्म की न्यूवे ना गलै।
न्यू तो जिन्दगी चार दिन की,
अर स्वाद नी अठन्नी का बी।
रपिया दो रपिया खोया प्यार म्ह,
ब्योन्त नही चवन्नी का बी।।
कद बोया किसनै काटया,
बेरा ना फल कितना निमडै:।
महंगा तजुर्बा, सस्ता ना मिलै,
यू चक्रवर्धी ब्याज ज्यूँ चलै।
मसीहा बणन के फेर म्ह,
फद्दू बण्या के पाया।
अर कित गया कोठारी कुठारपणा ,
तननै भौरा नी थ्याया।।
इस्तिहार बड़े बड़े किस काम के,
खोटा सिक्का ना सदा चलै।
महंगा तजुर्बा, सस्ता ना मिलै,
यू चक्रवर्धी ब्याज ज्यूँ चलै।
खून पसीना गेल हाड़ फोड़े,
या दाल कर्म की न्यूवे ना गलै।
महंगा तजुर्बा, सस्ता ना मिलै……
-सुनील सैनी “सीना”,
राम नगर, रोहतक रोड़, जीन्द(हरियाणा)-१२६१०२.