महंगाई एक प्रश्न – चिन्ह
इस बेमुर्रव्वत महँगाई ने
बिना बेमुर्रव्वत के तोड़ दी है कमर
और अभी भी
सुरसा के मुँह की तरह फैलती
धन और बेबसी साथ – साथ निगलती
सोचती जा रही है
कहीं बाकी तो नही रही कसर ?
लगता है अब
अपने आप को इंसान कहने का भी
टैक्स देना पड़ेगा
और अगर ये हुआ तो
इंसान , इंसान के बजाय
जानवर कहलाना ज्यादा पसंद करेगा
कम से कम टैक्स से तो बचेगा ,
अब या तो छोड़ दे
पेट भरना – तन ढकना
और पसंद करे सिर्फ मरना
अगर उस पर भी टैक्स लगा तो
बेचारा इंसान क्या करेगा ?
यह तो आगे वक्त ही बतायेगा
इस बढ़ती हुयी महँगाई की भूख को
रोकने से बेबस है इंसान
और सोचता है
अब क्या टैक्स में देना पड़ेगा
इंसान के बदले इंसान ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/02/86 )