मस्त मस्त हैं बेटियां
मस्त मस्त हैं बेटियां
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कुण्डलिया-१
मस्त मस्त हैं बेटियां, बातें करती खूब।
जीवन है मासूम सा, कहीं नहीं है ऊब।
कहीं नहीं है ऊब, मस्त होता है बचपन।
भेदभाव से दूर, खिला रहता घर आंगन।
कह सुरेन्द्र यह बात, हौंसले नहीं पस्त हैं।
बिटिया हैं अनमोल, हमेशा मस्त मस्त हैं।
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कुण्डलिया-२
सुन्दर प्रियकर है बहुत, बिटिया की मुस्कान।
इनसे बढ़ती है सदा, घर आंगन शान।
घर आंगन की शान, सुरक्षा पूर्ण दें इनको।
करें न कोई चूक, ध्यान रखना है सबको।
कह सुरेन्द्र यह बात, खुला रखना अपना घर।
बेटी है अनमोल, बात अति प्रियकर सुन्दर।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य