मस्ती
मस्ती
मस्ती को ही जीवन मानो।
नहीं व्यस्तता को सुख जानो।।
जो मस्ती में जीता रहता।
सदा प्रीति का प्याला पीता।।
जो प्रिय को अपनाना जाने।
वह खुद को मस्ताना माने।।
जिसके दिल में प्रेम बसा है।
वह अति मधुरिम दिव्य रसा है।।
जो मधुमास बना जीवन में।
वही हमेशा वृंदावन में।।
प्रीति सुधा को पीनेवाला।
बने अमर पद पानेवाला।।
उसके जीवन में मस्ती है।
प्रेम दिवाना जो हस्ती है।।
हँसमुख मानव मस्त सदा है।
सबसे हटकर स्नेहशुदा है।।
जिसके भीतर प्यार भरा है।
वह मदमाता सहज हरा है।।
जो साथी प्यारा बनता है।
सदा मस्त वह प्रिय लगता है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी