*मस्ती जग में छाई (बाल कविता)*
मस्ती जग में छाई (बाल कविता)
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अत्याचारी शासन था
कोहरे का अंधा-बहरा
थर-थर काँप रहे सब उससे
डर था उसका गहरा
एक बजे फिर मरी-मरी-सी
धूप निकलकर आई
जैसे आजादी का झंडा
हाथोंं में हो लाई
सूरज दादा ने फिर झाड़ा
भाषण लंबा-चौड़ा
बेचारा कोहरा तब डर कर
नभ से भागा-दौड़ा
खिली धूप में जनता ने
फिर जम कर खुशी मनाई
सबने खाई धूप
ढेर-सी मस्ती जग में छाई
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451