मस्तिष्क पक्षाघात से जूझ रहा हूंॅ
।।जीवन को वरदान बना दो।।
मस्तिष्क पक्षाघात से जूझ रहा हूंॅ
छोटा-सा सवाल पूछ रहा हूं ?
क्यों नहीं हो सकता मुझपे खर्च
वैज्ञानिक क्यों नहीं करते रिसर्च।
रोबोट में तो डाल रहे संवेदना
समझ नहीं रहा कोई मेरी वेदना।
क्यों रहूं मैं किसी पर निर्भर
मैं भी होना चाहता हूं आत्मनिर्भर।
अंतरिक्ष के रहस्य जानना चाहता हूं
मैं भी इंसान होना चाहता हूं ।
कई रोगों का तो मिटा दिया धब्बा
मैं थामे हूं अब भी दवाईयों का डब्बा।
क्या कमाल नहीं, तुमने दिखला दिए
आविष्कारों से उजियारे ला दिए।
देखना बुझे न विश्वास के दीये
मैं भी खुशियां के जलाऊं दीये।
अरे क्यों आपस में लड़ते हो
किससे होड़कर जलते हो।
लड़ना ही है तो निःशक्तता से लड़ो
सच्चे इंसान बन आगे बढ़ो।
बस एक ही सवाल मुझे है सालता
कब दूर होगी दुनिया से विकलांगता।
जीवन को वरदान बना दो
मुझको भी हंसना सिखा दो।
हे महान वैज्ञानिक! न बनो तुम आलसी
इस धरा से दूर भगा दो सेरेब्रल पाल्सी।
इस दुनिया से मिटा दो सेरेब्रल पाल्सी।।
स्वरचित—- आशीष श्रीवास्तव, भोपाल मप्र