मस्तिष्क की सीमाएं
मस्तिष्क की सीमाएं
मन की उड़ानें ऊँची हैं,सोच का दायरा गहरा,
पर ये दिमाग है ज़ंजीर,जो बांध दे सपनों को सवेरा।।
कल्पनाओं की रंगोली,इच्छाओं का समंदर,
पर ये तर्क का तूफान,जो बुझा दे सपनों का चंद्र।।
प्रतिभा की चमक है अंदर,किरदारों का जमावड़ा,
पर ये डर का अंधेरा,जो छुपा दे सपनों का ताजमहल।।
योजनाओं का जाल बुना है,हर कदम पर है सोच,
पर ये थकान की दीवार,जो तोड़ दे सपनों का कोच।।
रुक जाओ, ज़रा ठहरो,सोचो थोड़ा गहराई से,
क्या ये मस्तिष्क की सीमाएं,हैं सचमुच में सच्ची सच्चाई से?
नहीं, नहीं ये सच नहीं,ये बस एक धारणा है,
माना करो तुम खुद को,असीम शक्ति का स्वामी,
जिसके सपनों की कोई सीमा नहीं,जिसके हौसलों की कोई मंजिल नहीं।।
तो छोड़ दो ये तर्क-वितर्क,और डर का यह साया,
खोलो पंख अपने हौसलों के,और उड़ो ऊंचे, ऊंचे, जहाँ तक जा सको।।
क्योंकि तुम हो अनमोल हीरा,जिसकी चमक है अद्वितीय,
मत खो दो खुद को भ्रमों में,जिओ अपना जीवन सार्थक,
और करो सपनों को साकार,क्योंकि तुम हो सक्षम,
हर मुश्किल को पार करने का,हर सफलता को हासिल करने का।।