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23 Jan 2022 · 1 min read

मस्तियाँ

******* मस्तियाँ *******
**********************

याद आती हैं वो मस्तियाँ,
खूब बस्ती थी वो बस्तियाँ।

प्यार का सागर बहता था,
प्रेम की बहती थी किश्तियाँ।

देखते ही हमको झट वो,
जानकर कसती थी फब्तियाँ।

कौन है चुपके से आ कर,
मान ली हैं सारी गलतियाँ।

देख कर अंधेरा दिन में,
रात को जलती थी बतियाँ।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

151 Views
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