मसला हो ही जाता है
बड़ा बेजोड़ मुकद्दर है,
कुछ ना कुछ हो ही जाता है,
किसी से राब्ता करते हैं,
तो मसला हो ही जाता है…
आगे बढ़ते हैं कभी जो,
कोई ख्वाब गढ़ते हैं,
तो दरमियाँ अक्सर इक,
ख़ला रह ही जाता है…
चलते हैं बड़ी शिद्दत से,
अरमान लिए दिल में,
एक फा़सले पे आ कर,
काफिला रूक ही जाता है…
फिर भी क्या कहें ‘वारिद’,
इस हिमाकत की तुमसे,
रोज ही उतरते हैं…तैरते हैं!!!!
रोज साहिल रह ही जाता है..
©विवेक’वारिद’ *