मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते,
मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते,
मुद्दा ये है कि आपकी उम्मीदें इतनी क्यों बढ़ जाती हैं।
हर दर्द और हर ग़म को दिल में छिपा लेना,
फिर क्यों चाहतें हो कि सब आपकी परवाह करें, यही तो सवाल है।
दूसरों की चिंता में अपनी जान गवाना,
क्या यही है आपका तरीका, क्या यही आपकी आदतें हैं?
लोग आते हैं और चले जाते हैं, ये तो स्वाभाविक है,
पर आपकी अपेक्षाओं का वजन तो खुद ही संभालना पड़ेगा।
हर बार उम्मीदें इतनी क्यों कि हर किसी से मिल जाए सुकून,
शायद खुद की तलाश में ही छिपा है हर जवाब, यही सच है।
कभी सोचा है कि आपकी परेशानी का हल खुद में ही छुपा है,
उम्मीदों के बोझ से खुद को आज़ाद कर, जीवन को जीने का मजा लीजिए।